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________________ धर्मोपदेश परिग्रह - परिमाण के विषय में रत्नसार की, जैनधर्म की आराधना के सम्बन्ध में सहस्रमल्ल की, धर्म का माहात्म्य सूचित करने के लिये घृष्टक' को सुपात्रदान के विषय में धनदेव और धनमित्र की, शील अर्थात् परस्त्री के त्याग के विषय में कुलध्वज की, तप के बारे में दामन्नक की भावना के विषय में असम्मत की, जीवदया के विषय में भीम की और ज्ञान के विषय में सागरचन्द्र की । 1 २१९ इस कृति में बारह व्रतों के अतिचार और सम्यक्त्व आदि के आलापक भी आते हैं । २. वद्धमाणदेसणा : यह उवासगदसा का पद्यात्मक प्राकृत रूपान्तर है । इसके कर्ता का नाम ज्ञात नहीं है । इसका प्रारम्भ 'वीरजिणंद' से होता है । ३. वर्धमानदेशना : यह सर्वविजय का ३४०० श्लोक परिमाण ग्रन्थ है । इसकी एक हस्तलिखित प्रति वि० सं० १७१५ की मिलती है | ४. वर्धमानदेशना : यह गद्यात्मक कृति रत्नलाभगणी के शिष्य राजकीर्तिगणी ने लिखी है । यह दस उल्लासों में विभक्त है । इसमें अनुक्रम से आनन्द आदि श्रावकों का वृत्तान्त दिया गया है । यह कृति विषय एवं कथाओं की दृष्टि से शुभवर्धन गणीकृत 'वद्धमाणदेसणा' के साथ मिलती-जुलती है । * १. इसकी कथा के द्वारा, दुष्ट स्त्रियाँ अपने पति को वश में करने के लिए कैसे-कैसे दुष्कृत्य करती हैं तथा मंत्र - औषधि का प्रभाव कैसा होता है, यह बतलाया है । २. यह कृति हीरालाल हंसराज ने वीर संवत् २४६३ में प्रकाशित की है । अनुवाद मगनलाल इसके पहले हरिशंकर कालिदास शास्त्री का गुजराती हठीसिंह ने सन् १९०० में छपवाया था । इसके बारे में विशेष जानकारी 'जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास' (खण्ड २, उपखण्ड १) में दी है । ३. इसका गुजराती में अनुवाद हरिशंकर कालिदास शास्त्री ने किया है और वह छपा भी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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