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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास टीका- - इसपर भानुचन्द्रगणी ने वि० सं० १६७१ में एक वृत्ति लिखी है । इसका संशोधन जयविजय ने किया है । " २१८ १. वद्धमाणदेसणा ( वर्धमानदेशना ) : ३१६३ पद्य तक जैन महाराष्ट्री में तथा १० पद्य तक संस्कृत में रचित इस कृति के कर्ता शुभवर्धनगणी हैं । इसका रचना समय वि० सं० १५५२ है । जावड़ की अभ्यर्थना से उन्होंने यह ग्रन्थ लिखा है । ये लक्ष्मीसागरसूरि के शिष्य साधुविजय के शिष्य थे । वर्धमान स्वामी अर्थात् महावीर स्वामी ने 'उवासगदसा' नामक सातवें अंग का जो अर्थं कहा था वह सुधर्मा स्वामी ने जम्बूस्वामी से कहा । उसी को इसमें स्थान दिया गया है, अतः इस कृति को 'वर्धमानदेशना ' कहते हैं | यह दस उल्लासों में विभक्त है । उल्लासानुसार इसकी पद्य - संख्या क्रमशः ८०३, ७२४, ३६०, २४४, १३५, २२५, १८६, १७८, १०७ और २११ है । इस प्रकार इसमें कुल पद्य-संख्या ३१७३ है । प्रत्येक उल्लास के अन्त में एक पद्य संस्कृत में है और वह सब में एक-सा है । प्रत्येक उल्लास में आनन्द आदि दस श्रावकों में से एक-एक का अधिकार है । प्रथम उल्लास में सम्यक्त्व के बारे में आरामशोभा की कथा दी गयी है । उसमें श्रावक के बारह व्रतों को समझाने के लिये हरिबल मच्छीमार, हंस नृप, लक्ष्मीपुञ्ज, मदिरावती, धनसार, चारुदत्त, धर्मं नृप, सुरसेन और महासेन, केसरी चोर, सुमित्र मन्त्री, रणशूर नृप और जिनदत्त इन बारह व्यक्तियों की एक-एक कथा दी गयी है ।। रात्रिभोजनविरमण के बारे में हंस और केशव की कथा दी गयी है । शेष नौ उल्लासों में जो एक-एक अवान्तर कथा आती है उसकी तालिका इस प्रकार है : १. इसका गुजराती अनुवाद पं० दामोदर गोविन्दाचार्य ने किया है और वह छपा भी है । २. यह ग्रन्थ जैनधर्म प्रसारक सभा ने दो भागों में वि० सं० १९८४ और १९८८ में छपवाया है । प्रथम भाग में तोन उल्लास और दूसरे में बाकी के सब उल्लास हैं । इसके पहले वि० सं० १९६० में बालाभाई छगनलाल ने यह प्रकाशित किया था । ३. ये गयासुद्दीन खिलजी के कोशाधिकारी थे । इन्हें 'लघुशालिभद्र' भी कहा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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