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धर्मोपदेश
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महाकाव्य के रूप से सूचित ), दवदन्ती की चार सर्गों में कथा, विलासवती की कथा, अंजनासुन्दरी की कथा तथा नर्मदासुन्दरी की कथा ।
विवेगविलास ( विवेकविलास ) : ___ यह ग्रन्थ' वायड़गच्छ के जीवदेवसूरि के शिष्य जिनदत्तसूरि ने १३२३ पद्यों में रचा है। इसमें बारह उल्लास है। यह एक सर्वसामान्य कृति है । इसकी रचना सन् १२३१ में स्वर्गवासी होनेवाले जाबालिपुर के राजा उदयसिंह, उसके मन्त्री देवपाल और उसके पुत्र धनपाल को प्रसन्न करने के लिये हुई थी। इसमें मानव जीवन को सफल बनाने के लिये जिन बातों का सामान्य ज्ञान आवश्यक है उनका निरूपण किया गया है। पहले के पाँच उल्लासों में दिनचर्या की, छठे उल्लास में ऋतुचर्या की, सातवें में वर्षचर्या की और आठवें में जन्मचर्या की अर्थात् समग्र भव के जीवन-व्यवहार की जानकारी संक्षेप में दी गई है। नवें
और दसवें उल्लास में अनुक्रम से पाप और पुण्य के कारण बतलाये गये हैं। ग्यारहवें उल्लास में आध्यात्मिक विचार और ध्यान का स्वरूप प्रदर्शित किया गया है। बारहवाँ उल्लास मृत्यु-समय के कर्तव्य का तथा परलोक के साधनों का बोध कराता है । अन्त में दस पद्यों की प्रशस्ति है।
दिनचर्या अर्थात् दिन-रात का व्यवहार । इसके पाँच भाग किये गये हैं : १. पिछली रात्रि के आठवें भाग अर्थात् अर्घ प्रहर रात्रिसे लेकर प्रहर दिन, २. ढाई प्रहर दिन, ३. साढ़े तीन प्रहर दिन, ४. सूर्यास्त तक का दिन और ५. साढ़े तीन प्रहर रात्रि। इनमें से प्रत्येक भाग के लिये अनुक्रम से एक-एक उल्लास है । प्रारम्भ में स्वप्न, स्वर एवं दन्तधावन-विधि ( दतुअन ) के विषय में निरूपण है।
यह ग्रन्थ 'सरस्वती ग्रन्थमाला' में वि० सं० १९७६ में छपा है। इसके अतिरिक्त पं० दामोदर गोविन्दाचार्यकृत गुजराती अनुवाद के साथ यह मूल ग्रन्थ सन् १८९८ में भी छपा है। इस विवेकविलास का माधवाचार्य ने
सर्व-दर्शन-संग्रह में उल्लेख किया है। २. प्रथम उल्लास के तीसरे पद्य के आद्य अक्षरों से यह नाम सूचित
होता है। ३. इसके वंश का नाम 'बाहुमा' है । देखिए–प्रशस्ति, श्लोक ५.
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