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________________ २१४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास देव द्वारा पूर्वभव में की गयी मुनि की चिकित्सा की बात उपस्थित की गयी है । दसवें प्रकाश में जिनकल्पी की बारह उपाधियाँ, सचेलक और अचेलक दो प्रकार का धर्म, वस्त्रदान की महिमा और उस पर ध्वजभुजंग राजा की कथा - इस तरह विविध बातों का निरूपण किया गया है । ग्यारहवें प्रकाश में तुम्बा, लकड़ी और के पाठों का उल्लेख करके पात्र - दान के विषय में गई है। बारहवें प्रकाश में आशंसा, अनादर, पश्चात्ताप, विलम्ब और गर्व - दान के इन पाँच दोषों का और इनके विपरीत पाँच गुणों का निरूपण करके इनके बारे में दो वृद्धा स्त्रियों की, यक्ष श्रावक एवं धन व्यापारी की, भीम की, जीर्णश्रेष्ठी की, निधिदेव और भोगदेव की, सुधन और मदन की, कृतपुण्य और दशार्णभद्र की, धनसारश्रेष्ठी तथा कुन्तलदेवी की कथाएँ दी गई हैं । अन्त में प्रशस्ति है, जिसमें कर्ता ने अपने गुरु की परम्परा, दानप्रदीप का रचना-स्थान और रचना-वर्ष इत्यादि के ऊपर प्रकाश डाला है । सीलोवएसमाला ( शीलोपदेशमाला ) 10 मिट्टी - इन तीनों प्रकार धनपति श्रेष्ठी की कथा दी जयसिंहसूरि के शिष्य जयकीर्ति की जैन महाराष्ट्री में रचित इस कृति ' में इसमें शील अर्थात् ब्रह्मचर्यं के पालन के लिए शील का फल, स्त्रो संग का दोष, स्त्री को की निन्दा और प्रशंसा आदि बातों का । आर्या छन्द के कुल ११६ पद्य हैं । दृष्टान्तपूर्वक उपदेश दिया गया है साथ में रखने से अपवाद, स्त्री निरूपण है । टीकाएँ – रुद्रपल्लीयगच्छ के संघतिलकसूरि के शिष्य सोमतिलकसूरि ने वि० सं० १३९४ में लालसाधु के पुत्र छाजू के लिए इस ग्रन्थ पर शीलतरंगिणी नाम की वृत्ति लिखी है । इसके प्रारम्भ के सात - श्लोकों में मंगलाचरण है और १. सोमतिलकसूरि की शीलतरंगिणी नाम की टीका के साथ यह मूल कृति हीरालाल हंसराज ने सन् १९०९ में प्रकाशित को है । इसके पहले सन् १९०० में मूल कृति शीलतरंगिणी के गुजराती अनुवाद के साथ 'जैन विद्याशाला' अहमदाबाद ने प्रकाशित की थी । २. इनका दूसरा नाम विद्यातिलक है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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