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________________ २०९ धर्मोपदेश बृहन्मिथ्यात्वमथन : इसके कर्ता हरिभद्रसूरि है, ऐसा सुमतिगणी ने गणधरसाद्धशतक की बृहद् वृत्ति में कहा है, परन्तु यह कृति आज तक उपलब्ध नहीं हुई है । दरिसणसत्तरि ( दर्शनसप्तति ) अथवा सावयधम्मपयरण ( श्रावकधर्म प्रकरण) : यह हरिभद्रसूरि की जैन महाराष्ट्री के १२० पद्यों में रचित कृति' है । इसमें सम्यक्त्व एवं श्रावक के सागारधर्म का निरूपण है ।२।। दरिसणसुद्धि ( दर्शनशुद्धि ) अथवा दरिसणसत्तरि ( दर्शनसप्तति ): यह हरिभद्रसूरि की जैन महाराष्ट्री में रचित ७० पद्यों की कृति है। इसमें सम्यक्त्व के ६७ बोल पर प्रकाश डाला गया है। इसे सम्यक्त्व-सप्ततिका भी कहते हैं। इसकी पांचवीं और छठी गाथा किसी पुरोगामी की कृति से उद्धत की गई है। गाथा ५९-६३ में आत्मा का लक्षण और स्वरूप समझाया गया है। ___टीकाएं--वि सं० १४२२ में रचित ७७११ श्लोक-परिमाण 'तत्त्वकौमुदी' नामक विवरण के कर्ता गुणशेखरसूरि के शिष्य संघतिलकसूरि हैं । इसमें विविध कथाएं दी गई हैं, जिनमें से कुछ संस्कृत में हैं तो कुछ प्राकृत में । इसके अतिरिक्त दो उपलब्ध अवचूरियों में से एक गुणनिधानसूरि के शिष्य की है और दूसरी अज्ञातकर्तृक । मुनिसुन्दरसूरि के शिष्य शिवमण्डनगणी ने भी इस पर एक टीका लिखी है । शान्तिचन्द्र के शिष्य रत्नचन्द्रगणी ने वि० सं० १६७६ में इसपर एक बालावबोध लिखा है। सम्मत्तपयरण ( सम्यक्त्वप्रकरण ) अथवा सणसुद्धि ( दर्शनशुद्धि ) : ___यह प्रकरण चन्द्रप्रभसूरि ने जैन महाराष्ट्री में लिखा है। इसका प्रारम्भ 'पत्तभवण्णतीर' से होता है। इसमें सम्यक्त्व की शुद्धि के बारे में विचार किया गया है। १. यह ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेताम्बर संस्था द्वारा सन् १९२९ में प्रकाशित प्रकरणसन्दोह ( पत्र १-८) में छपी है। २. इसकी पहली गाथा इस प्रकार है : नमिऊण वद्धमाणं सावगधम्मं समासओ वुच्छं । सम्मत्ताई भावत्थसंगयसुत्तनीईए ॥१॥ ३. यह कृति तत्त्वकौमुदीसहित देवचंद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार संस्था ने सन् १९१३ में प्रकाशित की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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