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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास महाराष्ट्री में रचित आर्याछन्द के ५३१ पद्य इसमें हैं । इसका मुख्य विषय बारह भावनाओं में से भवभावना यानी संसारभावना है। ३२२ गाथाएँ केवल इसीके विषय में हैं। इसमें भवभावना के अतिरिक्त दूसरी ग्यारह भावनाओं का प्रसंगवश निरूपण आता है। एक ही भव की बाल्यादि अवस्थाओं का भी इसमें वर्णन है । इसके अतिरिक्त संसारी जीव की चारों गतियों के भव और दुःखों का विस्तृत वर्णन है। लेखक की उवएसमाला के साथ इस कृति का विचार करनेवाले को आचारधर्म का यथेष्ट बोध हो सकता है। यह नीतिशास्त्र का भी मार्ग-दर्शन कर सकती है।
टीकाएँ-इस पर वि० सं० ११७० में रचित १२,९५० श्लोक-परिमाण की ‘एक स्वोपज्ञ वृत्ति है। इसमें मूल में सूचित दृष्टान्तों की कथाएँ प्रायः जैन महा
राष्ट्री में दी गई हैं। ये कथाएँ उवएसमाला की स्वोपज्ञ वृत्तिगत कथाओं से प्रायः भिन्न हैं। इन दोनो वृत्तियों की कथाओं को एकत्रित करने पर एक महत्त्वपूर्ण कथाकोश बन सकता है। इस वृत्ति के अधिकांश भाग में नेमिनाथ' और भुवनभानु के चरित्र आते हैं।
भवभावना पर जिनचन्द्रसूरि ने एक टीका लिखी है। इसके अलावा ‘एक अज्ञातकतृक टीका एवं अवचूरि भी है। इस पर माणिक्यसुन्दर ने वि० सं० १७६३ में एक बालावबोध लिखा है। 'भावनासार:
यह अजितप्रभ की कृति है। उन्होंने स्वयं इसका उल्लेख वि० सं० १३७६ में रचित शान्तिनाथचरित्र की प्रस्तावना में किया है। ये अजितप्रभ पूर्णिमागच्छ के वीरप्रभ के शिष्य थे। भावनासन्धि :
अपभ्रश में रचित ७७ पद्यों की इस कृति' के रचयिता शिवदेवसूरि के शिष्य जयदेव हैं। इसमें सन् १०५४ में स्वर्गवासी होनेवाले मुंज के विषय में उल्लेख है। १. देखिए-पत्र ७ से २६८ । यह चरित्र जैन महाराष्ट्री के ४०५० (८+
४०४२ ) पद्यों में लिखा गया है। इसमें साथ-ही-साथ नवें वासुदेव कृष्ण
का चरित्र भी आलिखित है। २. देखिए-पत्र २७९ से ३६० । यह चरित्र मुख्यरूप से संस्कृत गद्य में है । ३. यह कृति Annals of the Bhandarkar Oriental Research
Institute ( Vol. XII ) में छपी है।
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