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________________ २०६ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास हैं। पहले भाग में नौ अध्याय हैं। उनमें साधुओं के आचार का निरूपण है । दूसरे भाग में आठ अध्याय हैं और उनमें श्रावकों के आठ मूलगुण' तथा बारह व्रतों को बारह उत्तरगुण मान कर उनका स्वरूप बतलाया है। इस सम्बन्ध में विशेष जानकारी मैंने अपने 'जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास' भाग २ में प्रस्तुत की है। आशाधर बघेरवाल जाति के राजमान्य सल्लक्षण और उनकी पत्नी श्रीरत्नी के पुत्र थे। उनका जन्म माण्डवगढ़ में हुआ था। महावीर उनके विद्यागुरु थे। इन्होंने अपनी पत्नी सरस्वती से उत्पन्न पुत्र छाहड़ की प्रशंसा की है। इन्होंने नलकच्छपुर के राजा अर्जुनवर्मदेव के राज्य में पैतीस वर्ष बिताये थे और बहुत साहित्य रचा था। उदयसेन ने 'नयविश्वचक्षु' एवं 'कलिकालिदास' कहकरतथा मदनकीर्ति ने 'प्रज्ञापुंज' कहकर इनकी प्रशंसा की है। इनके अन्य ग्रन्थ इस प्रकार हैं : अध्यात्मरहस्य, क्रियाकलाप, जिनयज्ञकल्प और उसकी टीका, त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र, नित्यमहोद्योत, प्रमेयरत्नाकर, भरतेश्वराभ्युदय, रत्नत्रय विधान, राजीमतीविप्रलम्भ, सहस्रनामस्तवन और उसकी टीका । इनके अतिरिक्त इन्होंने अमरकोश, अष्टांगहृदय, आराधनासार, इष्टोपदेश, काव्यालंकार, भूपालचतुर्विशतिका एवं मूलाराधना-इन अन्यकर्तृक ग्रन्थों पर भी टीकाएँ लिखी हैं। टीकाएं-इसपर स्वयं आशाधर ने 'ज्ञानदीपिका' नाम की पंजिका लिखी है। इसके अतिरिक्त स्वयं उन्होंने 'भव्यकुमुदचन्द्रिका' नाम की दूसरी टीका भी लिखी है। यह ज्ञानदीपिका की अपेक्षा बड़ी है। अनगारधर्मामृत की यह स्वोपज्ञ टीका वि० सं० १३०० की रचना है, जबकि सागारधर्मामृत की स्वोपज्ञ टीका वि० सं० १२९६ में लिखी गई थी।२।। १. ये तीन प्रकार से गिने जाते हैं : १ मद्य, मांस और मधु इन तीन प्रकार एवं पाँच प्रकार के उदुम्बर फल का त्याग, २ उपयुक्त तीन प्रकार तथा स्थूल हिंसा आदि पाँच पापों का त्याग और ३ मद्य, मांस एवं द्यूत तथा उपयुक्त पाँच पापों का त्याग । २. अनगारधर्मामृत और भव्यकुमुदचन्द्रिका का हिन्दी अनुवाद 'हिन्दी टीका' के नाम से पं० खूबचन्द ने किया है। यह खुशालचन्द पानाचन्द गाँधी ने सोलापुर से सन् १९२७ में प्रकाशित किया है । सागारधर्मामृत का हिन्दी में अनुवाद लालाराम ने किया है और दो भागों में 'दिगम्बर जैन पुस्तकालय', सूरत से प्रकाशित किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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