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________________ धर्मोपदेश २०५ इन द्वारों के निरूपण में विभिन्न उदाहरण दिये गये हैं । कथाएँ इस प्रकार है: इलापुत्र, उदयननृप, कामदेव श्रावक, जम्बूस्वामी, नन्दमणिकार, प्रदेशी राजा, मूलदेव, वंकचूल, विष्णुकुमार, सम्प्रति राजा, सुभद्रा, सुरदत्त श्रेष्ठी और स्थूलभद्र । इन कथाओं की पद्य - संख्या ४३७५ है । इनमें से केवल जम्बूस्वामी कथा के पद्य १४५० हैं । इसमें सम्यक्त्व की प्राप्ति से लेकर देशविरति की प्राप्ति तक का क्रम बतलाया है । इनमें दानादि चतुर्विध धर्मं तथा गृहस्थ धर्म एवं साधु-धर्म इस प्रकार द्विविध धर्म के विषय में कथन है । इन धर्मों का निरूपण करते समय सम्यक्त्व के दस प्रकार और श्रावक के बारह व्रतों का निर्देश किया गया है । टीकाएँ — स्वयं कर्ता ने इस पर टीका लिखी थी, किन्तु उनके प्रशिष्य उदयसिंह ने वि० सं० १२५३ में उसके खो जाने का उल्लेख धर्मविधि की अपनी वृत्ति को प्रशस्ति ( श्लो० ६ ) में किया है । उदयसिंह की यह वृत्ति ५५२० श्लोक - परिमाण है और चन्द्रावती में वि० सं० १२८६ में लिखी गई है । इसमें मूल में दिये गये उदाहरणों की स्पष्टता के लिए तेरह कथाएँ दी गई हैं । ये कथाएँ जैन महाराष्ट्री में रचित पद्यों में हैं । इस वृत्ति के अन्त में बीस पद्यों की प्रशस्ति है । इस पर एक और वृत्ति जयसिंहसूरि की है, जो १११४२ श्लोक - परिमाण है । इन्होंने 'उवएससार' ऐसे नामान्तरवाली अन्य धम्मविहि पर टीका लिखी है । धर्मामृत : दिगम्बर आशावर' द्वारा दो भागों में रचित यह पद्यात्मक कृति है । इन दोनों भागों को अनुक्रम से 'अनगारधर्मामृत' और 'सागारधर्मामृत' कहते १. इन्होंने पूज्यपादरचित 'इष्टोपदेश' एवं उसकी स्वोपज्ञ मानी जाती टीका के ऊपर टीका लिखी है और उसमें उपर्युक्त स्वोपज्ञ टीका का समावेश किया है । यह कृति स्वोपज्ञ टीका के साथ माणिकचन्द्र दिगम्बर ग्रन्थमाला में छपी है । इसके अतिरिक्त सागारधर्मामृत 'विजयोदया' टीका के साथ 'सरल जैन ग्रन्थमाला' ने जबलपुर से वीर संवत् २४८२ और २४८४ में छपवाया है । उसमें मोहनलाल शास्त्री का हिन्दी अनुवाद भी छपा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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