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________________ २०४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास यह कृति मार्गानुसारी के ३५ गुणों पर प्रकाश डालती है । टोका-इसपर मुनिचन्द्रसूरि ने ३००० श्लोक-परिमाण एक टीका लिखी है । इसकी एक हस्तलिखित प्रति वि० सं० ११८१ की मिलती है ।' धर्मरत्नकरण्डक : ९५०० श्लोक-परिमाण' का यह ग्रन्थ२ अभयदेवसूरि के शिष्य वर्धमान ने वि० सं० ११७२ में लिखा है। टीका-इसपर वि० सं० ११७२ की लिखी स्वोपज्ञ वृत्ति है। इसके संशोधकों के नाम अशोकचन्द्र, धनेश्वर, नेमिचन्द्र और पावचन्द्र हैं। धम्मविहि (धर्मविधि ) यह चन्द्रकुल के सर्वदेवसूरि के शिष्य श्रीप्रभसूरि की कृति है। जैन महाराष्ट्री में रचित इसमें ५० पद्य हैं। इसमें निम्नलिखित आठ द्वारों का निरूपण है : १. धर्म की परीक्षा, २. उसको प्राप्ति, २. धर्म के गुण अर्थात् अतिशय, ४. धर्म के नाश के कारण, ५. धर्म देनेवाले गुरु, ६. धर्म के योग्य कौन, ७. धर्म के प्रकार और ८. धर्म का फल । १. इसका गुजराती अनुवाद मणिलाल दोशी ने किया है और वह छपा भी है। मूल एवं उपर्युक्त टीका का हिन्दी अनुवाद अमृतलाल मोदी ने किया है । यह भी प्रकाशित हो चुका है। इसके अतिरिक्त डा० सुआली ने इटालियन भाषा में भी मूल का अनुवाद किया है। पहले तीन अध्यायों का अनुवाद टिप्पणियों के साथ Journal of the Italian Asiatic Society ( Vol. 21 ) में छपा है। २. यह कृति हीरालाल हंसराज ने दो भागों में सन् १९२५ में प्रकाशित की है। ३. पहले केवल मूल कृति 'हंस विजयजी फ्री लायब्रेरी' ने वि० सं० १९५४ में छपवाई थी, परन्तु बाद में सन् १९२४ में उदयसिंहसूरिकृत वृत्ति एवं संस्कृत छाया के साथ यह कृति उक्त लायब्ररी ने पुनः प्रकाशित की। इसके प्रारम्भ में मूल कृति तथा उसकी संस्कृत छाया भी दी गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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