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________________ धर्मोपदेश सचितामणि ( उपदेशचिंतामणि ) : जैन महाराष्ट्री के ४१५ पद्यों में रचित इस कृति ' के लेखक अंचलगच्छ के महेन्द्रप्रभसूरि के शिष्य जयशेखरसूरि हैं । यह चार अधिकारों में विभक्त है, जिनमें क्रमश: धर्म की प्रशंसा, धर्मं की सामग्री, देशविरति एवं सर्वविरति का निरूपण है । चतुर्थं अधिकार के उपान्त्य ( १५७ वें ) पद्य में कर्ता ने अपना प्राकृत नाम कुंजर, नयर, विसेस, आहब, सरस, पसूण और वरिस इन शब्दों के मध्याक्षर द्वारा सूचित किया है । १९९ है । टीकाएँ- इस पर एक स्वोपज्ञ टीका है, जिसका श्लोक - परिमाण १२, ०६४ यह टीका वि० सं० १४३६ में 'नृसमुद्र' नगर में रची गई थी । इसके अतिरिक्त स्वयं कर्ता इसी वर्ष में ४३०५ श्लोक-परिमाण की अवचूरि भी लिखी है । मेरुतुरंग ने इसपर एक वृत्ति और किसी अज्ञात लेखक ने एक अवचूरि भी लिखी है | ने प्रबोधचिन्तामणि : यह उपर्युक्त जयशेखरसूरि की वि० सं० १४६२ में गई कृति है । यह सात अधिकारों में विभक्त है और का स्वरूप स्पष्ट किया गया है। प्रथम अधिकार में चिदानन्दमय प्रकाश को वन्दन करके परमात्मा का निरूपण किया गया है । दूसरे में आगामी चौबीसी में प्रथम तीर्थंकर होनेवाले पद्मनाभ तथा उनके शिष्य धर्मरुचि का जीवनवृत्तान्त है । तीसरे में मोह और विवेक की उत्पत्ति तथा मोह के द्वारा राज्य की प्राप्ति का वर्णन आता है। चौथे में विवेक का विवाह तथा उसे प्राप्त राज्य के विषय में निरूपण है। पांचवें में मोह द्वारा भेजे गये दूत और कन्दर्प के दिग्विजय की बात आती है। छठे में कन्दर्प का प्रवेश, 'कलि' काल और विवेक का प्रस्थान १. स्वोपज्ञ टोका एवं गुजराती अनुवाद के साथ यह कृति चार भागों में हीरालाल हंसराज ने प्रकाशित की है, परन्तु जिनरत्नकोश ( वि० १, पृ० ४७ ) में मूल कृति में ५४० गाथाओं के होने का और हीरालाल हंसराज ने सन् १९१९ में प्रकाशित की है, ऐसा उल्लेख है । २. मूल एवं स्वोपज्ञ टीका का श्री हरिशंकर कालिदास शास्त्री ने गुजराती में अनुवाद किया है और वह प्रकाशित भी हो चुका है । ३. यह ग्रन्थ जैन धर्म प्रसारक सभा ने वि० सं० १९६५ में प्रकाशित किया है । इसी सभा ने इसका गुजराती अनुवाद भी प्रकाशित किया है । Jain Education International १९९१ पद्यों में लिखी उनमें मोह और विवेक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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