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________________ धर्मोपदेश १९७ आर्याछन्द में रचित इस कृति' के प्रणेता मलधारी हेमचन्द्रसूरि हैं। इन्होंने इसमें अपना नाम धर्मदासगणी को भांति कुशलतापूर्वक सूचित किया है। यह धर्मदासगणी की उवएसमाला की अनुकरणरूप कृति है । इसमें विविध दृष्टान्त देकर अधोलिखित बीस अधिकारों का निरूपण किया गया है : १. अहिंसा, २. ज्ञान, ३. दान, ४. शील, ५. तप, ६. भावना, ७. सम्यक्त्व की शुद्धि, ८. चारित्र की शुद्धि, ९. इन्द्रियों पर विजय, १०. कषायों का निग्रह, ११. गुरुकुलवास, १२. दोषों की आलोचना, १३. भववैराग्य, १४. विनय, १५. वैयावृत्य, १६. स्वाध्याय-प्रेम, १७. अनायतन का त्याग, १८. निन्दा का परिहार, १९. धर्म में स्थिरता और २०. अनशनरूप परिज्ञा। ____टीकाएँ-बृहटिप्पनिका ( क्रमांक १७७ ) के अनुसार स्वयं लेखक की स्वोपज्ञ वृत्ति वि० सं० ११७५ में रची गई है। इसका परिमाण लगभग १३,००० श्लोक है। इसमें मूल कृति में दृष्टान्त द्वारा सूचित कथाएँ गद्य और पद्य में जैन महाराष्ट्री में दी गई हैं। इसके अतिरिक्त इस पर अंचलगच्छ के जयशेखरसूरि ने वि० सं० १४६२ में १९०० श्लोक-परिमाण अवचूरि, साधुसोमगणी ने वि० सं० १५१२ में वृत्ति, अन्य किसी ने वि० सं० १५१९ से पहले एक दूसरी वृत्ति और मेरुसुन्दर ने बालावबोध की रचना की है। उवएस रसायण ( उपदेशरसायन ): चच्चरी इत्यादि के कर्ता जिनदत्तसूरि ने 'पद्धटिका' छन्द में अपभ्रंश में इसकी रचना की है। इसके विवरणकार के मतानुसार यह सब रागों में गाया जाता है। इसमें लोकप्रवाह, सुगुरु का स्वरूप, चैत्यविधि तथा श्रावक एवं श्राविका की हितशिक्षा-इन सब विषयों को स्थान दिया गया है । १. श्री कर्पूरविजयजीकृत भावानुवाद के साथ यह कृति 'जैन श्रेयस्कर मण्डल, महेसाणा ने सन् १९११ में प्रकाशित की है। इसके पश्चात् स्वोपज्ञ वृत्ति के साथ यह 'ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेताम्बर संस्था', रतलाम से वि० सं० १९९३ में प्रकाशित की गई है। २. श्री कर्पूरविजयजी ने इसका भावानुवाद किया है और वह छप भी चुका है। ३. यह 'अपभ्रंशकाव्यत्रयी' (पृ० २९-६६ ) में जिनपालकृत संस्कृत व्याख्या के साथ छपी है। कर्ता ने अन्तिम पद्य में 'उवएसरसायण' नाम दिया है। जिनपाल ने अपनी व्याख्या के आरम्भ में इसे उपदेशरसायन एवं धर्मरसायन रासक ( रासा ) कहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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