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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास धम्मोवएसमाला (धर्मोपदेशमाला ) :
जैन महाराष्ट्री में ९८ आर्याछन्द में रचित इस कृति' के लेखक कृष्ण मुनि के शिष्य और प्रस्तुत कृति के आद्य विवरणकार जयसिंहसूरि माने जाते हैं। यह धर्मदासगणीकृत उवएसमाला का प्रायः अनुकरण करती है ।
टोका-इस कृति पर उपर्युक्त जयसिंहसूरि ने ५,७७८ श्लोक-परिमाण एक विवरण नागोर में वि० सं० ९१५ में पूर्ण किया था। इसमें व्याख्या संस्कृत में है, परन्तु १५६ कथाएँ जैन महाराष्ट्री में हैं। ये कथाएँ अनेक दृष्टि से महत्त्व की हैं। सत्पुरुष के संग की महिमा को सूचित करने के लिए १९ वी गाथा के विवरण में वंकचूलि की कथा दी गई है। पृ० १९३-४ पर ऋषभदेव आदि चौबीस तीर्थंकरों की स्तुतिरूप जयकुसुममाला की रचना विवरणकार ने जैन महाराष्ट्री में की है। इसके अतिरिक्त इस विवरण के अन्त में इन तीर्थंकरों के गणधर एवं श्रुतस्थविरों के बारे में जैन महाराष्ट्री पद्य में जानकारी दी गई है । प्रस्तुत विवरण में धर्मदासगणीकृत उवएसमाला के अपने ( जयसिंहसूरि के ) विवरण का अनेक स्थानों पर उल्लेख आता है। इन्होंने 'द्विमुनिचरित' तथा 'नेमिनाथचरित' भी लिखे हैं ।
___ इस पर हर्षपुरीय गच्छ के ( मलधारी ) हेमचन्द्रसूरि के पट्टधर विजयसिंहसूरि ने वि० सं० ११९१ में १४,४७१ श्लोक-परिमाण विवरण संस्कृत में लिखा है। इसमें कथाओं का विस्तार है। इसके अतिरिक्त मदनचन्द्रसूरि के शिष्य मुनिदेव ने वि० सं० १३२५ में एक वृत्ति लिखी है और उसमें उन्होंने जयसिंहसूरिकृत विवरण का उपयोग किया है ।
उवएसमाला ( उपदेशमाला ):
'पुष्पमाला' के नाम से भी प्रसिद्ध और 'कुसुममाला' का गौण नाम धारण करनेवाली तथा आध्यात्मिक रूपकों से अलंकृत जैन महाराष्ट्री के ५०५
१. यह कृति जयसिंहसूरिकृत विवरणसहित 'सिंधी जैन ग्रन्थमाला' के २८ ३ ___ग्रन्थांक के रूप में सन् १९४९ में प्रकाशित हुई है। २. जम्बूस्वामी से लेकर देववाचक तक के । ३. देखिए-उपर्युक्त प्रकाशन की प्रस्तावना, पृ० ६.
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