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________________ “१९४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास 'दोससयमूलझालं' से प्रारम्भ होनेवाली इस कृति की ५१ वी गाथा के सौ अर्थ उदयधर्म ने वि० सं० १६०५ में किये हैं। ४७१ वी गाथा में 'मासाइस नामक पक्षी का उल्लेख है। टीकाएँ-प्रस्तुत 'उवएसमाला' पर लगभग बीस संस्कृत टीकाएँ हैं । कृष्णषि के शिष्य जयसिंह ने वि० सं० ९१३ में जैन महाराष्ट्री में एक 'वृत्ति' लिखी है। दुर्गस्वामी के शिष्य और उपमितिभवप्रपंचाकथा के रचयिता सिद्धर्षि ने इस पर वि० सं० ९६२ में 'हेयोपादेया' नाम की ९५०० श्लोक-परिमाण एक दुसरी वृत्ति लिखी है। उवएसमाला की सब टीकाओं में यह अग्रस्थानीय है। इस पर लिखी गई एक दुसरी महत्त्व की टीका का नाम 'दोघटी' है।' 'वादी' देवसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि की यह टीका ११५५० श्लोक-परिमाण है और इसका रचनाकाल वि० सं० १२३८ है। इसमें सिद्धर्षि का उल्लेख है । इस टीका में एक रणसिंह की कथा आती है, जिसमें कहा गया है कि वे विजयसेन राजा और विजया रानी के पुत्र थे। ये विजयसेन दीक्षा लेकर अवधिज्ञानी हए थे और उन्होंने अपने सांसारिक पुत्र के लिए 'उवएसमाला' लिखी थी। ये विजयसेन ही धर्मदासगणी हैं। दोघट्टी की वि० सं० १५२८ में लिखी गई एक हस्तलिखित प्रति में चार विभाग करके प्रत्येक विभाग को 'विश्राम' कहा है। इसके अलावा उसके पुनः दो विभाग करके उसे 'खण्ड संज्ञा भी दी है। प्रथम खण्ड में प्रारम्भ की ९१ गाथाएँ हैं। दोघट्टी वृत्ति में उवएसमाला में सुचित कथाएँ जैन महाराष्ट्री में और कुछ अपभ्रंश में हैं, जबकि व्याख्या तो संस्कृत में ही है। सिद्धर्षिकृत हेयोपादेया में कथानक अल्प और संक्षिप्त होने से वर्धमानसूरि ने उसमें और कथानक जोड़ दिये हैं। उसकी वि० सं० १२९८ में लिखित एक प्रति मिलती है। नागेन्द्रगच्छ के विजयसेन के शिष्य उदयप्रभ ने १२९९ में १२२७४ श्लोक-परिमाण की ‘कणिका' नाम की एक टीका लिखी है। १. इसकी पहली गाथा में 'घटाघटी' ऐसा शब्द-प्रयोग आता है, जिसके आधार पर इस टीका का नाम 'दोघट्टी' पड़ा है ऐसा कई लोगों का मानना है । इस टीका को 'विशेषवृत्ति' भी कहते हैं । २. इनके अतिरिक्त दुसरी संस्कृत आदि टीकाओं का निर्देश मैंने अपने लेख 'धर्मदासगणीकृत उवएसमाला अने एनां प्रकाशनो तथा विवरणो' ( आत्मानन्द प्रकाश ) में किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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