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________________ आगमसार और द्रव्यानुयोग १९१ ३. विवृति-८५० श्लोक-परिमाण की यह संस्कृत विवृति हरिभद्रसूरि ने वि० सं० ११७२ में लिखी है। ये बृहद्गच्छ के जिनदेवसूरि के शिष्य थे। ४. टोका-यह मलयगिरिसूरि की २४१० श्लोक-परिमाण की रचना है। ५. वृत्ति-१६७२ श्लोक-परिमाण की इस वृत्ति के लेखक है चन्द्रकुल के धर्मसूरि के शिष्य यशोभद्रसूरि । ६. विवरण-यह मेरुवाचक को कृति है । ७. टीका-यह अज्ञातकतृक है।' सूक्ष्मार्थविचारसार अथवा सार्धशतक प्रकरण : यह खरतरगच्छ के जिनवल्लभसूरि की कृति है। ये नवांगीवृत्तिकार अभयदेवसूरि के शिष्य थे। इनका स्वर्गवास वि० सं० ११६७ में हुआ था। इसमें कर्मसिद्धान्त का निरूपण किया गया है। टोकाएं--इस पर अनेक टोकाएँ हैं। एक अज्ञातकर्तृक भाष्य है । अंगुलसत्तरि इत्यादि के प्रणेता मुनिचन्द्रसूरि ने वि० सं० ११७० में इस पर एक चुण्णि (चूर्णि) लिखी है । शीलभद्र के शिष्य धनेश्वरसूरि ने ११७१ में ३७०० श्लोकपरिणाम एक वृत्ति लिखी है। दूसरी वृत्ति हरिभद्रसूरि ने ११७२ में लिखी है। तीसरी एक वृत्ति चक्रेश्वर ने भी लिखो है। कर्ता के शिष्य रामदेवगणि ने तथा महेश्वरसूरि ने इस पर एक-एक टीका लिखी है। एक अज्ञातकर्तृक टीका भी है । किसी ने एक १४०० श्लोकप्रमाण वृत्ति-टिप्पण भी लिखा है। प्रश्नोत्तररत्नमाला अथवा रत्नमालिका : २९ पद्यों की यह कृति सर्वमान्य सामान्य नीति पर प्रश्न एवं उत्तर के द्वारा प्रकाश डालती है। इसके प्रणेता विमलसूरि है। कई विद्वानों के मत से इसके लेखक दिगम्बर जिनसेन के अनुरागी राजा अमोघवर्ष हैं। कई इसे बौद्ध कृति मानते हैं, तो कई वैदिक हिन्दुओं की।" १. कई लोगों का मानना है कि इस पर दो भाष्य भी लिखे गये थे। २. धनेश्वरसूरि की वृत्ति के साथ इसे जैनधर्म प्रसारक सभा ने छपवाया है। ३. किसी-किसी हस्तलिखित प्रति में ३० पद्य है । ४. यह देवेन्द्रकृत टीका के साथ हीरालाल हंसराज ने जामनगर से सन् १९१४ में प्रकाशित की है। ५. इसके विषय में देखिए-मेरी पुस्तक 'जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास', खण्ड १, पृ० २४०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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