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________________ १८५ आगमसार और द्रव्यानुयोग निर्मित जिनमन्दिर में पूजा, ३२. मिथ्यादृष्टि कौन, ३३. वेश का अप्रामाण्य, ३४. असंयत का अर्थ, ३५. प्राणियों का वध करनेवाले को दान, ३६. चारित्र को सत्ता, ३७. आचरणा और ३८. गुणों की स्तुति । ___ टीका-स्वयं कर्ता ने एक महीने के भीतर ही सिद्धराज जयसिंह के राज्य में अणहिल्लपुर में एक वृत्ति लिखी है। इसके आरम्भ में एक पद्य की और अन्त में पाँच पद्य की एक प्रशस्ति है। इस वृत्ति का संशोधन नेमिचन्द्रसूरि ने किया है। सिद्धपंचासिया ( सिद्धपंचाशिका ) : यह' जगच्चन्द्रसूरि के शिष्य देवेन्द्रसूरि को रचना है। इनका स्वर्गवास वि० सं० १३२७ में हुआ था। इनकी दूसरी रचनाओं में पांच नव्य कर्मग्रन्थ, तीन भाष्य, दाणाइकुलय ( दानादिकुलक ), धर्मरत्न टीका, सवृत्तिक सड्ढदिणकिच्च ( श्राद्धदिनकृत्य ) एवं सुदर्शनाचरित्र ( सहकर्ता विजयचन्द्रसूरि ) हैं। सिद्धपंचासिया जैन महाराष्ट्री में रचित ५० गाथाओं को कृति है । इसकी रचना सिद्धपाहुड के आधार पर हुई है। इसमें सिद्ध के अनन्तर-सिद्ध और परम्परा-सिद्ध ऐसे दो भेद किये गये हैं। प्रथम प्रकार का १. सत्पदप्ररूपणा, २. द्रव्यप्रमाण, ३. क्षेत्र, ४. स्पर्शना, ५. काल, ६. अन्तर, ७. भाव और ८. अल्पबहुत्व इन आठ दृष्टियों से विचार किया गया है। द्वितीय प्रकार का इनके अतिरिक्त सन्निकर्ष द्वारा भी निरूपण है। इन दोनों प्रकार के सिद्धों के विषय में अधोलिखित पन्द्रह बातों के आधार पर प्रकाश डाला गया है : १. क्षेत्र, २. काल, ३. गति, ४. वेद, ५. तीर्थ, ६. लिंग, ७. चारित्र, ८. बुद्ध, ९. ज्ञान, १०. अवगाहना, ११. उत्कृष्टता, १२. अन्तर, १३. अनुसमय, १४. गणना और १५. अल्पबहुत्व । टीकाएँ-इस पर स्वयं कर्ता ने ७१० श्लोक-परिमाण की एक टीका लिखी है । इसके अतिरिक्त कितनी ही टीकाएँ और अवचूरियाँ अज्ञातकर्तृक हैं । विद्यासागर ने वि० सं० १७८१ में इस पर एक बालावबोध भी लिखा है । १. यह अज्ञातकर्तृक अवचूरि के साथ जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर से प्रकाशित हुई है। २. इनमें से एक अवचूरि प्रकाशित भी हुई है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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