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________________ १८३ आगमसार और द्रव्यानुयोग अंगुलसत्तरि ( अंगुलसप्तति ) : ____ इसके रचयिता मुनिचन्द्रसूरि हैं । ये यशोभद्रसूरि के शिष्य, आनन्दसूरि और चन्द्रप्रभसूरि के गुरुभाई तथा अजितदेवसूरि एवं वादी देवसूरि के गुरु थे । इनका स्वर्गवास वि० सं० ११७८ में हुआ था। इन्होंने छोटी-बड़ी ३१ कृतियाँ रची हैं। अंगुलसत्तरि में जैन महाराष्ट्री में विरचित ७० आर्या पद्य हैं । पहली गाथा में ऋषभदेव को नमन करके अंगुल का लक्षण कहने की प्रतिज्ञा की है । इस रचना में उत्सेधांगुल, आत्मांगुल और प्रमाणांगुल का स्वरूप समझाया है । साथ ही साथ इन तीनों का उपयोग भी सूचित किया है । किसी-किसी विषय में मतान्तरों का उल्लेख करके उनमें दूषण दिखलाया है । नगरी इत्यादि के परिमाण का यहाँ विचार किया गया है । __टोकाएँ-इस पर स्वय मुनिचन्द्रसूरि की स्वोपज्ञ टोका है । अज्ञातकर्तृक एक अवचूरि भी इस पर है । छट्ठाणपयरण (षट्स्थानकप्रकरण ) : इसके कर्ता जिनेश्वरसूरि हैं । ये वर्धमानसूरि के शिष्य, बुद्धिसागरसूरि के गुरुभाई तथा नवांगीवृत्तिकार अभयदेवसूरि के गुरु हैं। इन्होंने वि० सं० १०८० में हारिभद्रीय अष्टकप्रकरण पर वृत्ति लिखी है। प्रस्तुत कृति को 'श्रावकवक्तव्यता' भी कहते हैं। जैन महारप्ष्ट्री में आर्या छन्द में विरचित इस ग्रन्थ में १०४ पद्य हैं । समग्र कृति छः स्थानकों में विभक्त है । इनके नाम तथा प्रत्येक स्थानक की पद्य-संख्या इस प्रकार है : व्रतपरिकर्मत्व२६, शीलवत्त्व-२४, गुणवत्त्व-५, ऋजुव्यवहार-१७, गुरु की शुश्रूषा-६, तथा प्रवचनकौशल्य-२६ । इन छः स्थानकगत गुणों से विभूषित श्रावक उत्कृष्ट होता १. गुजराती अनुवाद के साथ यह कृति 'महावीर जैन सभा' खम्भात से सन् १९१८ में प्रकाशित हुई है। २. इनके नाम मैंने सवृत्तिक अनेकान्तजयपताका ( खण्ड १ ) की अपनी अंग्रेजी प्रस्तावना, पृ० ३० पर दिये हैं । ३. किसी ने इसका गुजराती में अनुवाद किया है और वह प्रकाशित भी हुआ है। ४. यह जिनपाल की वृत्ति के साथ 'जिनदत्तसूरि प्राचीन पुस्तकोद्धार फण्ड' सूरत से सन् १९३३ में प्रकाशित हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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