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________________ आगमसार और द्रव्यानुयोग १७७ और तीस अकर्मभूमियाँ, १६५. मद के आठ प्रकार, १६६. हिंसा के भेद, १६७. १०८ परिणाम, १६८. ब्रह्मचर्य के अठारह प्रकार, १६९. चौबीस काम, १७०. दस प्राण, १७१. दस कल्पवृक्ष , १७२. नरकों के नाम और गोत्र, १७३. नारकावासों की संख्या, १७४-६. नारक के दुःख, आयुष्य और देहमान, १७७. नरक में उत्पत्ति और मृत्यु का विरह, १७८-९. नारकों की लेश्या और उनका अवधिज्ञान, १८०. परमाधार्मिक, १८१. नरकों से निकले हुए जीवों की लब्धि, १८२. नरकों में उत्पन्न होनेवाले जीव, १८३-४. नरक में से निकलनेवालों की संख्या, १८५-६. एकेन्द्रिय आदि की कायस्थिति तथा भवस्थिति, १८७. उनके शरीर का परिमाण, १८८. इन्द्रियों का स्वरूप और उनके विषय, १८९ जीवों की लेश्या, १९०-१ एकेन्द्रिय आदि की गति और आगति, १९२-३. एकेन्द्रिय आदि के जन्म, मरण और विरह तथा उनकी संख्या, १९४ देवों के प्रकार और उनकी स्थिति, १९५. भवनपति इत्यादि के भवन, १९६-८. देवों के देहमान, लेश्या और अवधिज्ञान, १९९-२०१. देवों के उत्पाद-विरह, उद्वर्तना-विरह और उनकी संख्या, २०२-३. देवों की गति और आगति, २०४. सिद्धिगति में विरह, २०५. संसारी जीवों के आहार और उच्छ्वास, २०६. ३६३ पाखण्डी, २०७. आठ प्रकार के प्रमाद, २०८. भरत आदि बारह चक्रवर्ती, २०९. अचल आदि नौ हलधर (बलदेव ), २१०. त्रिपृष्ठ आदि नौ हरि ( वासुदेव ), २११. अश्वग्रीव आदि नौ प्रतिवासुदेव, २१२. चक्रवर्ती के चौदह और वासुदेव के सात रत्न, २१३. नवनिधि, २१४. जीवसंख्याकुलक, २१५-६. कर्म की ८ मूलप्रकृति और १५८. उत्तरप्रकृति, २१७. बन्ध, उदय, उदीरणा और सत्ता, २१८. कर्मों की स्थिति, २१९-२२०. ४२ पुण्यप्रकृति और ८२ पापप्रकृति, २२१. औपशमिक आदि छः भाव और उनके प्रकार, २२२-३. जीव एवं अजीव के १४-१४ भेद, २२४. चौदह गुणस्थान, २२५. चौदह मार्गणाएँ, २२६. बारह उपयोग, २२७. पन्द्रह योग, २२८. परलोक की अपेक्षा से गुणस्थान, २२९. गुणस्थान का कालमान, २३०. नारक आदि का विकुर्वणाकाल, २३१. सात समुद्धात, २३२. छः पर्याप्ति, २३३. अनाहारक के चार भेद, २३४. सात भयस्थान, २३५. अप्रशस्त भाषा के छः प्रकार, २३६. श्रावक के २, ८, ३२, ७३५ और १६८०६ प्रकार तथा बारह व्रत के १३, ८४, १२, ८७२०२ भंग, २३७. अठारह पापस्थान, २३८. मुनि के सत्ताईस गुण, २३९. श्रावक के इक्कीस गुण, २४०. मादा तियंञ्च की उत्कृष्ट गर्भस्थिति, २४१-२. मनुष्य-स्त्री की गर्भस्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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