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________________ १७६ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ( वस्त्र ) के और अवग्रह के पाँच-पाँच प्रकार, ८६. बाईस परोषह, ८७. साधु की सात मण्डली, ८८. दस बातों का उच्छेद, ८९. क्षपकश्रेणि, ९०. उपशमश्रेणि, ९१. चौबीस हजार स्थण्डिल, ९२. चौदह पूर्व, ९३-५. निर्ग्रन्थ, श्रमण और ग्रासैषणा के पाँच-पाँच प्रकार, ९६. पिण्डैषणा और पानैषणा के सात-सात प्रकार, ९७. भिक्षाचर्या के आठ मार्ग, ९८. दस प्रकार के प्रायश्चित्त, ९९. ओघ-सामाचारी, १००. पदविभाग-सामाचारी, १०१. दस प्रकार की सामाचारी, १०२. भवनिग्रन्थत्व की संख्या, १०३. साधु का विहार, १०४. अप्रतिबद्ध विहार, १०५. गीतार्थ और अगीतार्थ का कल्प, १०६. परिट्टापनोच्चार, १०७-९. दीक्षा के लिए अयोग्य पुरुष आदि की संख्या, ११०. विकलांग, १११. साधु के लिए ग्रहण करने योग्य वस्त्र, ११२. शय्यातर का पिण्ड, ११३. श्रुत की अपेक्षा से सम्यक्त्व', ११४. निग्रन्थों की चारों गतियाँ, ११५-८. क्षेत्र, मार्ग, काल और प्रमाण की अतिक्रान्ति, ११९-१२०. दुःशय्या और सुख-शय्या के चार-चार प्रकार, १२१. तेरह क्रियास्थान, १२२. सामायिक के आकर्ष, १२३. अठारह हजार शीलांग, १२४. सात नय, १२५. वस्त्रग्रहण की विधि, १२६. आगम आदि पाँच व्यवहार, १२७. चोलपट्टादि पाँच यथाजात, १२८. रात्रि-जागरण की विधि, १२९. आलोचनादायक गुरु की शोध, १३०. आचार्य आदि की प्रतिजागरणा, १३१. उपधि के धोने का समय, १३२. भोजन के भाग', १३३. वसति की शुद्धि, १३४. संलेखना, १३५. वसति का ग्रहण, १३६. जल की अचित्तता, १३७. देव आदि की अपेक्षा से देवी आदि की संख्या, १३८. दस आश्चर्य, १३९. चार प्रकार की भाषा, १४०. वचन के सोलह प्रकार, १४१-२. महीने और वर्ष के पाँच-पाँच प्रकार, १४३. लोक के खण्डक, १४४-७. संज्ञा के तीन, चार, दस और पन्द्रह प्रकार, १४८-९. सम्यक्त्व के सड़सठ और दस भेद, १५०. कुलकोटि की संख्या, १५१. योनि की संख्या, १५२. 'काल्यं द्रव्यषट्कं' से शुरू होनेवाले श्लोक को व्याख्या", १५३. श्रावकों की ग्यारह प्रतिमा, १५४-५. धान्य एवं क्षेत्रातीत की अचित्तता, १५६. धान्य के चौबीस प्रकार, १५७. मृत्यु के सत्रह भेद, १५८-६२. पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी और पुद्गलपरावर्त का स्वरूप, १६३-४. पन्द्रह कर्मभूमियाँ १. श्रुतकेवली निश्चय से सम्यक्त्वी होता है। २. कवल-कौर की संख्या । ३. वसति के सात गुण। ४. बैल की कल्पना । ५. यह ९७१वें पद्य के रूप में मूल में समाविष्ट किया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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