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________________ आगमसार और द्रव्यानुयोग १७५ १. चैत्यवन्दन, २. वन्दनक, ३. प्रतिक्रमण, ४. प्रत्याख्यान, ५. कायोत्सर्ग, ६. श्राद्ध प्रतिक्रमण के १२४ अतिचार, ७. भरतक्षेत्र के अतीत, वर्तमान और अनागत तथा ऐरावतक्षेत्र के वर्तमान और अनागत तीर्थंकरों के नाम, ८-९. ऋषभादि के आद्य गणधरों एवं आद्य प्रवर्तिनियों के नाम, १०. बीस स्थानक', ११-२. तीर्थंकरों के माता-पिता के नाम तथा उनकी गति, १३-४. एक साथ विचरण करनेवाले तथा जन्म लेने वाले तीर्थंकरों की उत्कृष्ट और जघन्य संख्या, १५.२५. ऋषभ आदि तीर्थकरों के गणधर, साधु, साध्वी, विकुर्विक, वादी, अवधिज्ञानी, केवली, मनःपर्यायज्ञानी, श्रुतकेवली, श्रावक और श्राविका की संख्या, २६-३४. ऋषभ आदि तीर्थंकरों के यक्ष, शासनदेवी, देह का मान, लांछन, वर्ण, व्रतधारी-परिवार की संख्या, आयुष्य, शिवगमन, परिवार की संख्या और निर्वाणभूमि, ३५. तीर्थंकरों के बीच का अन्तर, ३६. तीर्थोच्छेद, ३७-८. दस तथा चौरासी आशातना, ३९-४१. तीर्थंकरों के आठ प्रातिहार्य चौंतीस अतिशय और अठारह दोषों का अभाव, ४२. अर्हच्चतुष्क', ४३-५ऋषभ आदि के निष्क्रमण, केवलज्ञान और निर्वाण-समय के तप, ४६. भावी जिनेश्वर, ४७. ऊध्र्वलोक आदि में से एक ही समय में सिद्ध होनेवालों की उत्कृष्ट संख्या, ४८. एक ही समय में सिद्ध होनेवालों की संख्या, ४९. सिद्धों के पन्द्रह भेद, ५०. अवगाहना के आधार पर सिद्धों की संख्या, ५१. गृहिलिंग आदि से सिद्ध होनेवालों की संख्या, ५२. एक समय इत्यादि में सिद्ध होनेवालों की संख्या, ५३. लिंग ( वेद ) के आधार पर सिद्ध होनेवालों की संख्या, ५४-५. सिद्ध संस्थान और अवस्थान, ५६-८. सिद्धों की उत्कृष्ट आदि अवगाहना, ५९. शाश्वत जिनप्रतिमा के नाम, ६०-२. जिनकल्पी, स्थविरकल्पी और साध्वी के उपकरणों की संख्या, ६३. जिनकल्पी की एक वसति में उत्कृष्ट संख्या, ६४. आचार्य के छत्तीस गुण, ६५. विनय के बावन भेद, ६६. चरणसप्तति, ६७. करणसप्तति, ६८. जंघाचारण और विद्याचारण की गमनशक्ति, ६९. परिहारविशुद्धि, ७०. यथालन्दिक का स्वरूप, ७१. निर्यामक की संख्या, ७२-३. पचीस शुभ और पचीस अशुभ भावना, ७४-६. महाव्रतों की, कृतिकर्म की और क्षेत्र के आधार पर चारित्र की संख्या, ७७. स्थितकल्प, ७८. अस्थितकल्प, ७९-८५. भक्ति-चैत्य इत्यादि चैत्य के, गण्डिका इत्यादि पुस्तक के, दण्ड के, तृण के, चर्म के, दूष्य १. तीर्थंकर नाम-कर्म उपाजित करने के। २. नाम-जिन, स्थापना-जिन, द्रव्य जिन और भाव-जिन । ३. वन्दनक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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