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________________ १७२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास देवों और नारकों के आयुष्य, भवन एवं अवगाहन; मनुष्यों एवं तिर्यञ्चों के शरीर का मान तथा आयुष्य का प्रमाण; देवों के और नारकों के उपपात ( जन्म ) और उद्वर्तन ( च्यवन ) का विरहकाल; एक समय में होनेवाले उपपात एवं उद्वर्तन की संख्या तथा सब जीवों की गति और आगति का आनुपूर्वी के अनुसार वर्णन | इनके अतिरिक्त देवों के शरीर का वर्ण, उनके चिह्न इत्यादि बातें भी इसमें आती हैं । संक्षेप में ऐसा कहा जा सकता है कि इसमें जैन दृष्टि से खगोल और भूगोल का वर्णन आता है । साथ ही नारक, मनुष्य एवं तिर्यञ्च के विषय में भी कुछ जानकारी इससे उपलब्ध होती है । प्रस्तुत कृति की रचना पण्णवणा इत्यादि के आधार पर हुई है । इसमें यदि कोई स्खलना हुई हो तो उसके लिये जिनभद्रगणी ने क्षमा माँगी है । टीकाएँ – ७३वीं गाथा की मलयगिरिकृत विवृत्ति से ज्ञात होता है कि हरिभद्रसूरि ने प्रस्तुत कृति पर एक टीका लिखी थी । पूर्णभद्र के शिष्य और नमसाधु के गुरु शीलभद्र ने वि० सं० ११३९ में २८०० श्लोक - परिमाण एक विवृत्ति और मुनिपतिचरित के कर्ता हरिभद्र ने एक वृत्ति लिखी है ऐसा जिनरत्नकोश में उल्लेख है । मलयगिरिसूरि ने इस पर एक विवृत्ति लिखी है । यह विवृत्ति जीव एवं जगत् के बारे में विश्वकोश जैसी है । ५०० श्लोक - परिमाण की इस विवृत्ति में विविध यंत्र भी दिये गये हैं । ३६४वीं गाथा में संक्षिप्ततर संग्रहणी के विषय में सूचना है। इसके अनुसार इसके बाद की दो गाथाओं में शरीर इत्यादि चौबीस द्वारों का वर्णन आता है । संखित्तसंगहणी ( संक्षिप्तसंग्रहणी ) अथवा संगहणिरयण ( संग्रहणिरत्न ): १ इस कृति का प्राकृत नाम इसके अन्तिम पद्य में देखा जाता है । इसके रचयिता श्रीचन्द्रसूरि हैं । इसमें जैन महाराष्ट्री में रचित २७३ आर्या गाथाएँ १. २७३ गाथा की यह कृति देवभद्रसूरि की टीका के साथ देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार संस्था ने सन् १९१५ में प्रकाशित की है । इसकी गाथा - संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती रही है । ३४९ गाथावाली मूल कृति संस्कृत छाया एवं मुनि यशोविजयजीकृत गुजराती शब्दार्थ गाथार्थ और विशेषार्थ के साथ 'मुक्ति- कमल - जैन- मोहनमाला' के ४७ वें पुष्प के रूप में सन् १९३९ में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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