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आगमसार और द्रव्यानुयोग
१. खण्ड, २. योजन, ३. क्षेत्र, ४. पर्वत, ५. कूट ( शिखर ), ६. तीर्थ, ७. श्रेणि, ८. विजय, ९. द्रह और १०. नदी। ___टोकाएँ-इस कृति पर तीन वृत्तियाँ मिलती है, जिनमें से दो अज्ञात-कर्तृक हैं। तीसरी वृत्ति कृष्ण गच्छ के प्रभानन्दसूरि ने वि० सं० १३९० में लिखी थी। इसके प्रारम्भ में प्रस्तुत कृति का क्षेत्रसंग्रहणी और अन्त की प्रशस्ति में क्षेत्रादिसंग्रहणी के नाम से निर्देश है। संगहणी ( संग्रहणी अथवा बृहत्संग्रहणी ):
इसके कर्ता विशेषावश्यकभाष्य, समयक्षेत्रसमास आदि मननीय कृतियों के प्रणेता जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण हैं।
स्वयं कर्ता ने पहली गाथा में प्रस्तुत ग्रन्थ का नाम 'संगहणी' कहा है, परन्तु इसके पश्चात् रचित अन्य संग्रहणियों से इसका भेद दिखलाने के लिए इसे 'बृहत्संग्रहणी' कहा जाता है।
जैन महाराष्ट्री में रचित इस संग्रहणी में ऊपर-ऊपर से देखने पर ३६७ गाथाएं हैं, परन्तु गा० ७३ और ७९ पर की विवृत्ति में मलयगिरि द्वारा किये गये उल्लेख से ज्ञात होता है कि ७३ से ७९ तक की सात गाथाएँ प्रक्षिप्त हैं । इनके अतिरिक्त ९, १०, १५, १६, ६८,६९ और ७२ ये सात गाथाएँ मलयगिरि ने अन्यकर्तृक कही हैं। इनमें से अन्तिम तीन गाथाएँ अर्थात् ६८, ६९ और ७२ सूरपण्णत्ति की हैं । इस हिसाब से संग्रहणी में ३५३ गाथाएँ जिनभद्र की हैं। कई लोगों के मत से मूल गाथाएँ लगभग २७५ थीं किन्तु कालान्तर में किसी-न-किसी के द्वारा अन्यान्य गाथाओं का समावेश होने पर ५०० के करीब हो गई हैं।
विषय-प्रस्तुत कृति में निम्नलिखित विषयों को स्थान दिया गया है ऐसा उसकी गा० २-३ में कहा है :
१. यह बृहत्संग्रहणी के नाम से मलयगिरिसूरिकृत विवृत्ति के साथ भावनगर से
वि० सं० १९७३ में प्रकाशित हुई है। जैनधर्म प्रसारक सभा ने वि० सं० १९९१ में 'श्रीबृहत्संग्रहणी' के नाम से जो पुस्तक प्रकाशित की है उसमें मूल तथा मलयगिरि की टीका का गुजराती अनुवाद है। अनुवादक है श्री कुंवरजी आनन्दजी । अनुवाद में २३ और अन्त में श्री जेठालाल हरिभाई शास्त्री के तैयार किये हुये ४१ यंत्र दिये गये हैं।
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