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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वनसेनसूरि के शिष्य तथा हेमतिलकसूरि के पट्टधर थे। इन्होंने वि० सं० १४२८ में सिरिवालकहा और वि० सं० १४४७ में गुणस्थानक्रमारोह लिखे हैं ।
प्रस्तुत कृति जिनभद्रीय समयखित्तसमास के आधार पर तैयार की गई है, अतः इन दोनों में विषय की समानता है।
टोकाएँ-इस पर लिखी गई स्वोपज्ञवृत्ति का परिमाण १६०० श्लोक का है। इस वृत्ति में समयखित्तसमास की मलयगिरिसूरिकृत टीका का आधार लिया गया है । इस पर अज्ञातकर्तृक एक टिप्पण भी है। इसे अवचूरि भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त पावचन्द्र ने' तथा उदयसागर ने एक-एक बालावबोध भी लिखा है। खेत्तसमास (क्षेत्रसमास ) :
इसकी रचना देवानन्द (वि० सं० १३२० ) ने की है। इस नाम की दूसरी भी कितनी ही प्राकृत पद्यरचनाएँ मिलती हैं। जिनके कर्ता एवं गाथा-संख्या निम्नांकित है : १. सोमतिलकसरि
गाथा ३८७ २. पद्मदेवसूरि
गाथा ६५६ ३. श्रीचन्द्रसूरि
गाथा ३४१ देवानन्द का क्षेत्रसमास सात विभागों में विभक्त है। इस पर स्वोपज्ञवृत्ति भी है। जम्बूदीवसंगहणी ( जम्बूद्वीपसंग्रहणी ) :
जैन महाराष्ट्री में २९ पद्यों में रचित इस कृति के कर्ता हरिभद्रसूरि हैं।" इन्होंने इसमें जम्बूद्वीप के विषय में जानकारी प्रस्तुत की है। इसमें निम्नलिखित दस द्वारों का निरूपण किया गया है :
१. इनके नाम से एक नया गच्छ चला है । २. इसी वर्ष में चन्द्रप्रभ ने क्षेत्रसमास नाम की कृति लिखी है। ३. इनकी इस कृति को नव्यक्षेत्रसमास या बृहत्क्षेत्रसमास भी कहते हैं। ४. यह प्रभानन्दसूरि की वृत्ति के साथ जैनधर्म प्रसारक सभा ने सन् १९१५ में
प्रकाशित की है। ५. यही आचार्य अनेकान्तजयपताका के प्रणेता है या अन्य, यह जानना बाकी
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