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________________ आगमसार और द्रव्यानुयोग पाँच अधिकार हैं और क्रमशः जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखण्ड, कालोदधि और पुष्करवर द्वीप के आधे भाग के बारे में जानकारी दी गई है। प्रथम अधिकार में प्रसंगवश सूर्य, चन्द्र और नक्षत्रों की गति के विषय में तथा द्वितीय अधिकार में ५६ अन्तर्वीपों के बारे में विस्तृत निरूपण है। इस प्रकार इसमें खगोल और भूगोल की चर्चा आती है। इसमें जो चालीस' करणसूत्र हैं वे इसके महत्त्व में अभिवृद्धि करते हैं। टीकाएँ-प्रस्तुत कृति पर दस वृत्तियाँ उपलब्ध हैं। इनमें से तीन तो अज्ञातकर्तृक हैं। अवशिष्ट वृत्तियों के कर्ता के नाम और उनके रचना-समय का उल्लेख इस प्रकार है : हरिभद्रसूरि ( वि० सं० ११८५), सिद्धसूरि ( वि० सं० ११९२ ), मलयगिरिसूरि (वि० सं० १२०० लगभग), विजयसिंह ( वि० सं० १२१५), देवभद्र ( वि० सं० १२३३), देवानन्द ( वि० सं० १४५५ ) और आनन्दसूरि । इनमें से हरिभद्रसूरि के अतिरिक्त बाकी के वृत्तिकारों की वृत्ति का ग्रन्थान ( श्लोक-परिमाण ) अनुक्रम से ३०००, ७८८७, ३२५६, १०००, ३३३२ और २००० श्लोक हैं । इन सब में मलयगिरिकृत टीका ( वृत्ति) सबसे बड़ी है। इसके प्रारम्भ में तीन और अन्त में पांच श्लोक प्रशस्तिरूप हैं। क्षेत्रविचारणा: इसे नरखित्त पयरण ( नरक्षेत्रप्रकरण ) तथा लघुक्षेत्रसमास भी कहते हैं । २६४ पद्य में जैन महाराष्ट्री में रचित इस ग्रन्थ प्रणेता रत्नशेखरसूरि हैं । यह १. उदाहरणार्थ देखिए-पद्य ७, १३, १४ आदि । २. इन करणसूत्रों की व्याख्या 'जम्बुद्दीवकरणचुण्णि' में देखी जाती है। इस चूर्णि में अन्य करणसूत्रों का भी स्पष्टीकरण है।। ३. प्रथम पद्य में जिनवचन की तथा द्वितीय में जिनभद्रगणी की प्रशंसा है । ४. इसके आरम्भ के तीन पद्यों में भी जिनभद्रगणी की प्रशंसा है। ५. यह कृति जैन आत्मानन्द सभा ने स्वोपज्ञवृत्ति के साथ वि० सं० १९७२ में प्रकाशित की है। इस नाम से एक कृति मुक्ति-कमल-जैन-मोहनमाला में वि० सं० १९९० में छपी है। उस में चन्दुलाल नानचन्दकृत गुजराती विवेचन तथा यन्त्रों एवं चित्रों को स्थान दिया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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