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________________ १५६ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पंचास्तिकायसार : पंचत्थि काय संग सुत्त' ( पंचास्तिकाय संग्रहसूत्र ) यानी पंचत्थिकायसार ( पंचास्तिकायसार ) के कर्ता भी कुन्दकुन्दाचार्य हैं । पद्यात्मक जैन शौरसेनी में रचित इस कृति के दो स्वरूप मिलते हैं : एक में अमृतचन्द्रकृत टीका के अनुसार १७३ गाथाएँ हैं, तो दूसरे में जयसेन और ब्रह्मदेवकृत टीका के अनुसार १८१ पद्य हैं । अन्तिम पद्य में यद्यपि 'पंचत्थिकायसंगहसुत्त' नाम आता है, परन्तु दूसरा नाम विशेष प्रचार में है । इसके टीकाकार अमृतचन्द्र के मत से यह समग्र कृति दो श्रुतस्कन्धों में विभक्त है । प्रथम श्रुतस्कन्ध में १०४ गाथाएँ हैं, जबकि दूसरे में १०५ से १७३ अर्थात् ६९ गाथाएँ हैं । प्रारम्भ के २६ पद्य पीठबन्धरूप हैं और ६४ वीं आदि गाथाओं का निर्देश 'सिद्धान्तसूत्र' के नाम से किया गया है । सौ इन्द्रों द्वारा नमस्कृत जिनों को वन्दन करके इसका प्रारम्भ किया गया है । इसमें निम्नांकित विषय आते हैं : समय के निरूपण की प्रतिज्ञा, अस्तिकायों का समवाय ( समूह ) रूप 'समय', अस्तिकाय का लक्षण, पाँच अस्तिकाय और काल का निरूपण, द्रव्य के तीन लक्षण, द्रव्य, गुण एवं पर्याय का परस्पर सम्बन्ध विवक्षा के अनुसार द्रव्य की सप्तभंगी, जीव द्रव्य के ( अशुद्ध पर्याय की अपेक्षा से ) भाव, अभाव, भावाभाव और अभावभाव, व्यवहार-काल के समय निमेष, काष्ठा, कला, नाली, अहोरात्र, मास, ऋतु, अयन और संवत्सर जैसे भेद, संसारी जीव का स्वरूप, सिद्ध का स्वरूप और उसका सुख, जोव का लक्षण े, मुक्ति का स्वरूप, ज्ञान और दर्शन के प्रकार, ज्ञानी और ज्ञान का सम्बन्ध, संसारी जीव का कर्तृत्व और भोक्तृत्व, जीव १. यह कृति अमृतचन्द्रकृत तत्त्वदीपिका यानी समयव्याख्या नाम की संस्कृत टीका तथा हेमराज पाण्डे के बालावबोध पर से पन्नालाल बाकलीवालकृत हिन्दी अनुवाद के साथ ' रायचंद्र जैन ग्रन्थमाला' में १९०४ में तथा अंग्रेजी अनुवादसहित आरा से प्रकाशित हुई है । इसी ग्रन्थमाला में प्रकाशित इसकी दूसरी आवृत्ति में अमृतचन्द्र और जयसेन की संस्कृत टीकाएँ तथा हेमराज पाण्डे का बालावबोध छपा है । अमृतचन्द्र की टीका के साथ गुजराती अनुवाद 'दिगम्बर स्वाध्याय मन्दिर' से वि० सं० २०१४ में प्रकाशित हुआ है । २. धवला में 'पंचत्थिकायसार' का उल्लेख है । ३. जो चार प्रकार के प्राणों द्वारा जीता है, जियेगा और पहले जीता था वह 'जीव' है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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