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________________ १५१ आगमसार और द्रव्यानुयोग अमृतचन्द्र का अनुसरण करते हैं और उनकी वृत्ति का भी उपयोग करते हैं । जयसेन का समय ईसा की बारहवीं शताब्दी के द्वितीय चरण के आसपास है । प्रभाचन्द्रकृत सरोजभास्कर पवयणसार की तीसरी टीका है । इसकी रचना समयसार की बालचन्द्रकृत टीका के बाद हुई है । इनका समय ईसा की चौदहवीं शताब्दी का प्रारम्भ होगा, ऐसा प्रतीत होता है । इन्होंने दव्वसंगह ( द्रव्य संग्रह ) की टीका लिखी है और आठ पाहुडों पर पंजिका लिखी थी ऐसा भी कई लोगों का मानना है । मल्लिषेण नामक किसी दिगम्बर ने इस पर संस्कृत में टीका लिखी थी ऐसा कहा जाता है । इसके अतिरिक्त वर्धमान ने भी एक वृत्ति लिखी है । बा कावबोध - हेमराज पाण्डे ने वि० सं० १७०९ में हिन्दी में बालावबोध लिखा है और इसके लिए उन्होंने अमृतचन्द्र की टीका का उपयोग किया है । इस बालावबोध की प्रशस्ति में शाहजहाँ का उल्लेख आता है । पद्ममन्दिरगणी ने भी वि० सं० १६५९ में एक बालावबोघ लिखा है । समयसार : यह कुन्दकुन्दाचार्य की जैन शौरसेनी पद्य में ( मुख्यतः आर्या में ) रचित एक महत्त्व की कृति है । उपाध्याय श्री यशोविजयजी जैसे श्वेताम्बर विद्वानों की दृष्टि में भी यह एक सम्मान्य ग्रन्थ है । इसकी भी दो वाचनाएँ मिलती हैं : एक में ४१५ पद्य हैं, तो दूसरी में ४३९ हैं । अमृतचन्द्र ने समग्र कृति को नौ अंकों में विभक्त किया है । प्रारम्भ की ३८ गाथाओं तक के भाग को उन्होंने पूर्वरंग कहा है। कुन्दकुन्दाचार्य की उपलब्ध सभी कृतियों में समयसार सबसे बड़ी कृति है । इसमें जीव आदि नौ तत्त्वों को शुद्ध निश्चयनयानुसारी प्ररूपणा को अग्रस्थान दिया गया है । इस शुद्ध निश्चयनय को समझने के लिए व्यवहारनय की आवश्य १. इसे प्रवचनसरोजभास्कर भी कहते हैं । २. यह रायचन्द्र जैन ग्रन्थमाला में १९१९ में प्रकाशित हुआ है । अंग्रेजी अनुवाद के साथ Sacred Books of the Jainas सिरीज़ में १९३० में, तथा अमृतचन्द्र और जयसेन की टीकाओं के साथ 'सनातन जैन ग्रन्थमाला' बनारस में भी १९४४ में यह छप चुका है । इनके अतिरिक्त श्री हिम्मतलाल जेठालाल शाह का गुजराती पद्यात्मक अनुवाद जैन अतिथि सेवा समिति, सोनगढ़ की ओर से १९४० में प्रकाशित हुआ है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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