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अन्य कर्मसाहित्य
१४१ इस वृत्ति के आधार पर केशववर्णी ने संस्कृत में टीका लिखी। फिर अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने मन्दप्रबोधिनी नामक संस्कृत टीका बनाई। इन दोनों संस्कृत टीकाओं के आधार पर पं० टोडरमल्ल ने सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक हिन्दी टीका लिखी । इन टीकाओं के आधार पर जीवकाण्ड का हिन्दी अनुवाद पं० खूबचन्द्र ने तथा कर्मकाण्ड का हिन्दी अनुवाद पं० मनोहरलाल ने किया है। श्री जे० एल० जैनी ने इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया है । लब्धिसार (क्षपणासारगभित ) : ___ क्षपणासारगर्भित लब्धिसार' भी नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती की ही कृति है। गोम्मटसार में जीव व कर्म के स्वरूप का विस्तृत विवेचन है जब कि लब्धिसार में कर्म से मुक्त होने के उपाय का प्रतिपादन है । लब्धिसार में ६४९ गाथाएँ है जिनमें २६१ गाथाएँ क्षपणासार को हैं। इसमें तीन प्रकरण हैं : दर्शनलब्धि, चारित्रलब्धि और क्षायिकचारित्र । इनमें से क्षायिकचारित्र प्रकरण क्षपणासार के रूप में स्वतंत्र ग्रन्थ भी गिना जाता है ।
ग्रन्थ के प्रारम्भ में आचार्य ने सिद्धों, अर्हन्तों, आचार्यों, उपाध्यायों एवं साधुओं को वन्दन किया है तथा सम्यग्दर्शनलब्धि व सम्यक्चारित्रलब्धि के प्ररूपण का संकल्प किया है। दर्शनलब्धि प्रकरण में निम्नोक्त पाँच लब्धियों का विवेचन है : १. क्षयोपशमलब्धि, २. विशुद्धिलब्धि, ३. देशनालब्धि, ४. प्रायोग्यलब्धि, ५ करणलब्धि । चारित्रलब्धि प्रकरण में देशचारित्र व सकलचारित्र का व्याख्यान किया गया है । इसमें उपशमचारित्र का विस्तृत विवेचन है। क्षायिकचारित्र' प्रकरण अर्थात् क्षपणासार में चारित्रमोह को क्षपणा (क्षय ) का विधान करते हुए अधःप्रवृत्तकरण, अपूर्वकरण तथा अनिवृत्तकरण का स्वरूप समझाया गया है । इसमें निम्न विषयों का भी निरूपण है : संक्रमण, कृष्टिकरण, कृष्टिवेदन, समुद्घात, मोक्षस्थान । ग्रन्थ के अन्त में ग्रन्थकार आचार्य ने अपना नाम नेमिचन्द्र बताया है तथा अपने को ( ज्ञानदाता ) वीरनन्दि व इन्द्रनन्दि का वत्स एवं ( दीक्षादाता) अभयनन्दि का शिष्य कहा है और अपने गुरु को नमस्कार किया है :
१. (अ) पं० मनोहरलालकृत हिन्दी अनुवादसहित-परमश्रुत प्रभावक मंडल,
बम्बई, सन् १९१६. (आ) केशववर्णीकृत संस्कृत टीका व टोडरमल्लकृत हिन्दी टीका के साथ
भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी संस्था, कलकत्ता.
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