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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वीरिंदणंदिवच्छेणप्पसुदेणभयणंदिसिस्सेण । दसणचरित्तलद्धी सुसूयिया णेमिचंदेण ।। ६४८ ।। जस्स य पायपसाएणणंतसंसारजलहिमुत्तिण्णो।
वीरिंदणंदिवच्छो णमामि तं अभयणंदिगुरुं ।। ६४९ ।। लब्धिसार की व्याख्याएँ :
लब्धिसार पर दो टीकाएँ हैं : केशववर्णीकृत संस्कृत टीका और टोडरमल्लकृत हिन्दी टीका। संस्कृत टीका चारित्रलब्धि प्रकरण तक ही है। हिन्दी टीकाकार टोडरमल्ल ने चारित्रलब्धि प्रकरण तक तो संस्कृत टीका के अनुसार व्याख्यान किया किन्तु क्षायिकचारित्र प्रकरण अर्थात् क्षपणासार का व्याख्यान माधवचन्द्रकृत संस्कृत गद्यात्मक क्षपणासार के अनुसार किया । पंचसंग्रह :
अमितगतिकृत पंचसंग्रह' संस्कृत गद्य-पद्यात्मक ग्रन्थ है। इसकी रचना वि० सं० १०७३ में हुई। यह गोम्मटसार का संस्कृत रूपान्तर-सा है । इसके पांचों प्रकरणों की श्लोक-संख्या १४५६ है। लगभग १००० श्लोक-प्रमाण गद्यभाग है।
प्राकृत पंचसंग्रह के मूल ग्रन्थकर्ता तथा भाष्यगाथाकार के नाम एवं समय दोनों ही अज्ञात हैं। इसकी गाथा-संख्या १३२४ है। गद्य भाग लगभग ५०० श्लोक-प्रमाण है।
१. माणिकचन्द दिगम्बर ग्रन्थमाला, बम्बई, सन् १९२७. २. संस्कृत टीका, प्राकृत वृत्ति तथा हिन्दी अनुवादसहित-भारतीय ज्ञानपीठ,
काशी, सन् १९६० ( सम्पादक-पं० हीरालाल जैन ). ग्रन्थ के अन्त में श्रीपालसुत डड्ढविरचित संस्कृत पंचसंग्रह भी दिया गया है।
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