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________________ अन्य कर्मसाहित्य है। शेष तीन ग्रन्थ अर्थात् शतक, सप्ततिका एवं कर्मप्रकृति इस समय भी उपलब्ध हैं। पंचसंग्रहकार आचार्य चंद्रषिमहत्तर के समय, गच्छ आदि का किसी प्रकार का उल्लेख उपलब्ध नहीं है। इनकी स्वोपज्ञ वृत्ति के अन्त में केवल इतना-सा उल्लेख है कि ये पावर्षि के शिष्य हैं। इसी प्रकार इनके महत्तर-पद के विषय में भी इनकी स्वोपज्ञ वृत्ति में किसी प्रकार का उल्लेख नहीं है। आचार्य मलयगिरि ने भी इन्हें 'मया चन्द्रषिनाम्ना साधुना' ऐसा कहते हुए महत्तर-पद से विभूषित नहीं किया है। सामान्य प्रचलित उल्लेखों के आधार पर ही इन्हें यहाँ महत्तर कहा गया है । __ आचार्य चन्द्रषिमहत्तर के समय के विषय में यही कहा जा सकता है कि गर्गर्षि, सिद्धर्षि, पावर्षि, चन्द्रर्षि आदि ऋषिशब्दान्त नाम विशेषकर नवीं-दसवीं शती में अधिक प्रचलित थे अतः पंचसंग्रहकार चन्द्रषिमहत्तर भी सम्भवतः विक्रम की नवीं-दसवीं शताब्दी में विद्यमान रहे हों । पंचसंग्रह और उसकी स्वोपज्ञ टीका के सिवाय चन्द्रषिमहत्तर की कोई अन्य कृति उपलब्ध नहीं हुई है । __ पंचसंग्रह में लगभग एक हजार गाथाएँ हैं जिनमें योग, उपयोग, गुणस्थान, कर्मबन्ध, बन्धहेतु, उदय, सत्ता, बंधनादि आठ करण एवं इसी प्रकार के अन्य विषयों का विवेचन किया गया है। प्रारम्भ में आठ कर्मों का नाश करने वाले वीर जिनेश्वर को नमस्कार किया गया है तथा महान् अर्थ वाले पंचसंग्रह नामक ग्रन्थ की रचना का संकल्प किया गया है : । नमिऊण जिणं वोरं सम्म दुट्टकम्मनिट्ठवगं । वोच्छामि पंचसंगहमेयमहत्थं जहत्थं च ।। १।। इसके बाद ग्रन्थकार ने 'पंचसंग्रह' नाम की दो प्रकार से सार्थकता बताते हुए लिखा है कि चूंकि इसमें शतकादि पाँच ग्रन्थों को संक्षेप में समाविष्ट किया गया है अथवा पाँच द्वारों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है अतः इसका पंचसंग्रह नाम सार्थक है : सयगाइ पंच गंथा जहारिहं जेण एत्थ संखित्ता। दाराणि पंच अहवा तेण जहत्थाभिहाणमिणं ॥ २॥ इस ग्रन्थ में निम्नोक्त पाँच द्वारों का परिचय है : १. योगोपयोग-मार्गणा, २. बंधक, ३. बंधव्य, ४. बंधहेतु, ५. बंधविधि । एतद्विषयक गाथा निम्नलिखित है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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