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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास तच्छिष्याः स्म भवन्ति जीतविजयाः सौभाग्यभाजो बुधाः,
भ्राजन्ते सनया नयादिविजयास्तेषां सताबुधाः। तत्पादाम्बुजभृङ्गपद्मविजयप्राज्ञानुजन्मा बुध
स्तत्त्वं किञ्चिदिदं यशोविजय इत्याख्याभृदाख्यातवान् ।। ४ ॥ इदं हि शास्त्रं श्रुतकेवलिस्फुटाधिगम्यपूर्वोद्धृतभावपावनम् । ममेह धीर्वामनयष्टिवद्ययौ तथापि शक्त्यैव विभोरियभुवम् ॥ ५ ॥ प्राक्तनार्थलिखनाद्वितन्वतो नेह कश्चिदधिको मम श्रमः ।
वीतरागवचनानुरागतः पुष्टमेव सुकृतं तथाप्यतः ॥ ६ ॥ चन्द्रर्षिमहत्तरकृत पंचसंग्रह :
पंचसग्रह' आचार्य चन्द्रषिमहत्तरविरचित कर्मवाद विषयक एक महान् ग्रन्थ है । इसमें शतक आदि पाँच ग्रन्थों का पाँच द्वारों में संक्षेप में समावेश किया गया है । ग्रन्थकार ने ग्रन्थ में योगोपयोगमार्गणा आदि पाँच द्वारों के नाम दिये हैं। इन द्वारों के आधारभूत शतक आदि पाँच ग्रन्थ कौन-से है, इसका मूल ग्रन्थ अथवा स्वोपज्ञ वृत्ति में कोई स्पष्टीकरण नहीं है। आचार्य मलयगिरि में इस ग्रन्थ की अपनी टीका में स्पष्ट उल्लेख किया है कि इसमें ग्रन्थकार ने शतक, सप्ततिका, कषायप्राभूत, सत्कर्म और कर्मप्रकृति इन पाँच ग्रन्थों का समावेश किया है। इन पाँच ग्रन्थों में से कषायप्राभूत के सिवाय शेष चार ग्रन्थों का आचार्य मलयगिरि ने अपनी टीका में प्रमाणरूप से उल्लेख किया है। इससे सिद्ध होता है कि मलयगिरि के समय में कषायप्राभूत को छोड़ कर शेष चार ग्रन्थ अवश्य विद्यमान थे। इन चार ग्रन्थों में से सत्कर्म आज अनुपलब्ध
१. ( अ ) स्वोपज्ञ वृत्तिसहित -आगमोदयसमिति, बम्बई, सन् १९२७. (आ) मलयगिरिकृत वृत्तिसहित-हीरालाल हंसराज, जामनगर,
सन् १९०९. ( इ ) मूल-जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, सन् १९१९. ( ई ) स्वोपज्ञ एवं मलयगिरिकृत वृत्तिसहित-मुक्ताबाई ज्ञानमंदिर,
खूबचंद पानाचंद, डभोई (गुजरात), सन् १९३७-३८. (उ) मलयगिरिकृत वृत्ति के हीरालाल देवचंदकृत गुज० अनु० सहित
जैन सोसायटी, १५, अहमदाबाद, प्रथम खंड, सन् १९३५, द्वितीय खंड, सन् १९४१.
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