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________________ अन्य कर्मसाहित्य १२१ १०. सत्तावस्था-सत्ता का भेद, साधादि और स्वामी इन तीन दृष्टियों से विचार किया गया है। सत्ता का अर्थ है कर्मों का निधि के रूप में पड़े रहना। सत्ता विवक्षाभेद से दो, आठ एवं एक सौ अठावन प्रकार की होती है। आचार्य ने विविध गुणस्थानों की दृष्टि से सत्ता में स्थित कर्मप्रकृतियों का विशद विवेचन किया है । नारक और देवों की दृष्टि से भी सत्ता का निरूपण किया गया है। उपसंहार के रूप में ग्रंथकार ने प्रस्तुत ग्रन्थ के ज्ञान का विशिष्ट फल बताया है । यह फल अष्टकर्म की निर्जरा से प्राप्त होने वाले अलौकिक सुख के अतिरिक्त और कुछ नहीं है ।२ प्रस्तुत परिचय से स्पष्ट है कि कर्मप्रकृति जैन कर्मवादसम्मत कर्म की विविध अवस्थाओं का विवेचन करने वाला एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। इसकी निरूपण-शैली कुछ कठिन है । मलयगिरि आदि की टीकाएँ इसके अर्थ के स्पष्टीकरण के लिए विशेष उपयोगी हैं । कर्मप्रकृति की व्याख्याएँ : कर्मप्रकृति की तीन व्याख्याएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें से एक-प्राकृत चूर्णि है एवं दो संस्कृत टीकाएँ । चूर्णिकार का नाम अज्ञात है । सम्भवतः प्रस्तुत चूणि सुप्रसिद्ध चूणिकार जिनदासगणि महत्तर को ही कृति हो। इस विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता । संस्कृत टीकाओं में एक सुप्रसिद्ध टीकाकार मलयगिरिकृत वृत्ति है एवं दूसरी न्यायाचार्य यशोविजयगणि-विरचित टीका । यशोविजयगणि का समय विक्रम की अठारहवीं शताब्दी है । इनके गुरुतत्त्वविनिश्चय, उपदेशरहस्य, शास्त्रवार्तासमुच्चय आदि अनेक मौलिक ग्रन्थ आज भी उपलब्ध हैं । इन तीनों व्याख्याओं में से चूणि का ग्रन्थमान सात हजार श्लोकप्रमाण, मलयगिरिकृत वृत्ति का ग्रन्थमान आठ हजार श्लोकप्रमाण एवं यशोविजयविहित टीका का ग्रन्थमान तेरह हजार श्लोकप्रमाण है। चूणिचूणि के प्रारम्भ में निम्न मंगल-गाथा है : १. गा० १-४९. २. गा० ५५. ३. जिनदासगणि महत्तर का परिचय आगमिक चूणियों से सम्बन्धित प्रकरण में दिया जा चुका है। देखिए-इसी इतिहास का भा० ३, पृ० २९० २९३. ४. मलयगिरि का परिचय आगमिक टीकाओं से सम्बन्धित प्रकरण में दिया जा चुका है । देखिए-भा० ३, पृ० ४१५-४१८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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