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________________ अन्य कर्मसाहित्य को देखकर सहज ही इस बात का अनुमान हो सकेगा कि कर्मवाद का जैन परम्परा में कितना महत्त्वपूर्ण स्थान है एवं कर्मसम्बन्धी साहित्य उसकी कितनी विपुल निधि है दिगम्बरीय कर्मसाहित्य प्रन्थ का नाम कर्ता इलोकप्रमाण रचनाकाल १. महाकर्मप्रकृतिप्राभूत* पुष्पदन्त तथा ३६००० अनुमानतः विक्रम की अथवा कर्मप्राभृत भूतबलि २-३ री शती (षट्खण्डशास्त्र) , प्राकृत टीका कुन्दकुन्दाचार्य १२००० ,, प्राकृत-संस्कृत___ कन्नड़मिश्रित टीका शामकुण्डाचार्य ६००० , कन्नड़ टीका तुम्बुलूराचार्य ५४००० ... ,, संस्कृत टीका समन्तभद्र ४८००० " प्राकृत टीका बप्पदेवगुरु ३८००० , धवला टीका वीरसेन ७२००० लगभग वि०सं०९०५ २. कषायप्राभृत* गा० २३६ अनुमानतः विक्रम की ३ री शती ।, चूणि* यतिवृषभ ६००० अनुमानतः विक्रम की छठी शती उच्चारणाचार्य १२००० टीका शामकुण्डाचार्य व्याख्या तुम्बुलूराचार्य ३०००० 1, प्रा० टीका बप्पदेवगुरु ३०००० ,, जयधवला टीका* वीरसेन तथा ६०००० विक्रम की ९-१० वीं जिनसेन शती ३. गोम्मटसार* नेमिचन्द्र गा० १७०५ विक्रम की ११ वीं सिद्धान्तचक्रवर्ती , कन्नड़ टीका चामुण्डराय * प्रकाशित ग्रन्थ गुणधर " वृत्ति शती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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