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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास की अनुपलब्ध टीका व्याख्याप्रज्ञप्तिवृत्ति से है, ऐसा प्रतीत होता है। जयधवला: कार ने आगे भी उच्चारणाचार्य के मत से अन्य व्याख्यानाचार्यों के मतों का भेद बतलाया है तथा चूर्णिसूत्र, बप्पदेवाचार्यलिखित उच्चारणा एवं स्वलिखित उच्चारणा के मतभेदों का उल्लेख किया है। वीरसेन की स्वलिखित उच्चारणा जयघवला से अतिरिक्त कोई संक्षिप्त व्याख्या है, ऐसा मालूम होता है।
जयधवला भाषा, शैले, सामग्री आदि दृष्टियों से धवला के ही समकक्ष है । अभी तक यह विशालकाय टीका पूरी प्रकाशित नहीं हुई है ।
मिदि परूविदं । एदासि दोण्हमुच्चारणाणमत्थो जाणिय वत्तव्यो। अम्हाणं पुण वासपुधत्तंतरं सोहणमिदि अहिप्पाओ ।
-कसायपाहुड, भा॰ २, पृ० ४२०-४२१. १. कसायपाहुड, भा० ३, पृ० २१३-२१४, ५३२. २. वही, पृ० ३९८.
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