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________________ १०४ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास जयधवला रखा। इस नाम का उल्लेख स्वयं टीकाकार ने ग्रन्थ के अन्त में किया है। जयधवला की रचना शक संवत् ७५९ के फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन पूर्ण हुई, ऐसा इसकी प्रशस्ति में उल्लेख है। यह टीका गुर्जरार्यानुपालित वाटग्रामपुर में राजा अमोघवर्ष के राज्यकाल में लिखी गई।' मंगलाचरण व प्रतिज्ञा-जयधवला टीका के प्रारम्भ में वीरसेनाचार्य ने चन्द्रप्रभ जिनेश्वर की स्तुति की है। तदनन्तर चौबीस तीर्थंकरों, वीर जिनेन्द्र, श्रुतदेवी, गणधरदेवों, गुणधर भट्टारक, आर्यमंक्षु, नागहस्ती एवं यतिवृषभ को प्रणाम करते हुए प्रस्तुत विवरण लिखने की प्रतिज्ञा की है। गुणधर भट्टारक ने गाथासूत्रों के प्रारम्भ में तथा यतिवृषभ स्थविर ने चूर्णिसूत्रों के आरम्भ में मंगल क्यों नहीं किया, इसकी जयधवलाकार ने युक्तियुक्त चर्चा की है। पवप्रमाण-कषायप्राभृत एवं कषायप्राभृतचूणि की रचना का उल्लेख करते हुए जयधवलाकार ने लिखा है कि भगवान महावीर के निर्वाण के ६८३ वर्ष पश्चात् होने वाले सब आचार्य अंगों एवं पूर्वो के एकदेश के ज्ञाता हुए । अंगों व पूर्वो का एकदेश ही आचार्यपरम्परा से गुणधराचार्य को प्राप्त हुआ। ज्ञानप्रवाद नामक पांचवें पूर्व की दसवीं वस्तु के तीसरे कषायप्राभृतरूपी महासमुद्र के पार को प्राप्त गुणधर भट्टारक ने ग्रन्थविच्छेद के भय से सोलह हजार पदप्रमाण पेज्जदोसपाहुड ( कषायप्राभृत ) का केवल १८० गाथाओं द्वारा उपसंहार किया । पुनः वे ही सूत्रगाथाएँ आचार्यपरम्परा से आती हुई आर्यमंक्षु तथा नागहस्ती को प्राप्त हुईं। इन दोनों आचार्यों के पादमूल में उन गाथाओं के अर्थ को सम्यक्तया सुनकर प्रवचनवत्सल यतिवृषभ भट्टारक ने चूर्णिसूत्र की रचना की। इसी टीका में अन्यत्र टीकाकार ने बताया है कि कषायप्राभूत की गुणधर के मुखकमल से निकली हुई उपसंहाररूप गाथाएँ २३३ हैं । यतिवृषभ के मुखारविंद से निकला हुआ चूणिसूत्र छः हजार पदप्रमाण है। १. देखिए-कसायपाहुड, भा० १, प्रस्तावना, पृ० ६९-७७. २. कसायपाहुड, भा० १, पृ० १-५. ३. वही, पृ० ५-९. ४. पद के स्वरूप के लिए देखिए-वही, पृ० ९०-९२. ५. वही, पृ०८७-८८. ६. वही, पृ० ९६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.002097
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta, Hiralal R Kapadia
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, Agam, Karma, Achar, & Philosophy
File Size14 MB
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