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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
अनुभागविभक्ति और प्रदेशविभक्ति - चूर्णिकार ने प्रकृतिविभक्ति एवं स्थितिविभक्ति की ही तरह अनुभागविभक्ति तथा प्रदेशविभक्ति का भी अनुयोगद्वारपूर्वक विवेचन किया है ।
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क्षणाक्षणाधिकारकर्मप्रदेशों की क्षीणाक्षीणस्थितिकता का विचार करते हुए चुर्णिकार ने बताया है कि कर्मप्रदेश अपकर्षण से क्षीणस्थितिक हैं, उत्कर्षण से क्षीणस्थितिक हैं, संक्रमण से क्षीणस्थितिक हैं और उदय से क्षीणस्थितिक हैं । कौन-से कर्मप्रदेश अपकर्षण से क्षीणस्थितिक हैं ? जो कर्मप्रदेश उदयावली के भीतर स्थित हैं वे अपकर्षण से क्षीणस्थितिक हैं । उदयावली के बाहर स्थित कर्मप्रदेश अपकर्षण से अक्षीणस्थितिक हैं । दूसरे शब्दों में उदयावली के भीतर स्थित कर्मप्रदेशों की स्थिति का अपकर्षण - ह्रास नहीं हो सकता किन्तु जो कर्मप्रदेश उदयावली के बाहर स्थित हैं उनकी स्थिति को घटाया जा सकता है । कौन-से कर्मप्रदेश उत्कर्षण से क्षीणस्थितिक हैं ? जो कर्मप्रदेश उदयावली में प्रविष्ट हैं वे उत्कर्षण से क्षीणस्थितिक हैं, इत्यादि ।
स्थितिक अधिकार — क्षीणाक्षीणाधिकार के बाद चूर्णिकार ने स्थितिक अधिकार का तीन अनुयोगद्वारों में विवेचन किया है । इन अनुयोगद्वारों के नाम इस प्रकार हैं : समुत्कीर्तना, स्वामित्व और अल्पबहुत्व | 2
बन्धक- अर्थाधिकार — बन्धक नामक अर्थाधिकार में दो अनुयोगद्वार हैं : बन्ध और संक्रम
संक्रम-अर्थाधिकार — संक्रम का उपक्रम पाँच प्रकार का है : आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता और अर्थाधिकार । चूर्णिकार ने इस प्रकरण में संक्रम की विविध दृष्टियों से विस्तारपूर्वक विवेचना की है ।
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वेदक - अर्थाधिकार — वेदक नामक अर्थाधिकार में दो अनुयोगद्वार हैं : उदय और उदीरणा । इसमें चार सूत्र - गाथाएँ हैं । इनमें से पहली गाथा प्रकृतिउदीरणा और प्रकृति - उदय से सम्बन्धित है ।'
उपयोग-अर्थाधिकार — उपयोग नामक अर्थाधिकार से सम्बन्धित सात गाथाओं की विभाषा करते हुए चूर्णिकार ने बताया है कि क्रोध, मान, माया एवं लोभ का जघन्य तथा उत्कृष्ट दोनों प्रकार का काल अन्तर्मुहूर्त है । गतियों
१. वही, पृ० २१३-२३४. ३. वही, पृ० २४८-२४९. ५. वही, पृ० ४६५.
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२. वही, पृ० २३५-२.४७. ४. वही, पृ० २५०. ६. वही, पृ० ४६७.
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