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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ३. उत्तराध्ययननियुक्ति गाथा १२० में कालिकाचार्य की कथा । ४. आवश्यकनियुक्ति की ७६४ से ७६९ तक की गाथाओं में दशपूर्वधर वज्रस्वामी को नमस्कार । ५. उत्तराध्ययन सूत्र के अकाममरणीय नामक अध्ययन से सम्बन्धित एक नियुक्ति-गाथा है जिसका अर्थ यों है : हमने मरणविभक्ति से सम्बन्धित सभी द्वारों का अनुक्रम से वर्णन किया। पदार्थों का सम्पूर्ण एवं विशद वर्णन तो जिन अर्थात् केवलज्ञानी और चतुर्दशपूर्वविद् हो कर सकते हैं ।' यदि नियुक्तिकार स्वयं चतुर्दशपूर्व विद् होते तो अपने मुख से ऐसी बात न कहते । ६ जैसा कि पहले कहा जा चुका है, दशाश्रु तस्कन्धनियुक्ति के प्रारंभ में ही आचार्य लिखते हैं : 'प्राचीन गोत्रीय, अंतिम श्रुतकेवलो और दशाश्रुतस्कन्ध, कल्प तथा व्यवहार के प्रणेता महर्षि भद्रबाहु को मैं नमस्कार करता हूँ।' इससे सहज हो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि नियुक्तिकार स्वयं चतुर्दशपूर्वधर भद्रबाहुस्वामी होते तो इस प्रकार छेदसत्रकार को नमस्कार न करते । दूसरे शब्दों में यदि छेदसूत्रकार और नियुक्तिकार एक ही भद्रबाहु होते तो दशाश्रुतस्कन्ध नियुक्ति के प्रारंभ में छेदसूत्रकार भद्र बाहु को नमस्कार न 'किया जाता क्योंकि कोई भी समझदार ग्रंयकार अपने आप को नमस्कार नहीं करता है। ___ उपयुक्त उल्लेखों से यही बात सिद्ध होती है कि छेदसूत्रकार चतुर्दशपूर्वधर श्रुतकेवली आय भद्रबाहु और नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु एक ही त्यक्ति न होकर भित्र-भिन्न व्यक्ति हैं। हाँ, नियुक्तियों में उपलब्ध कुछ गाथाएँ अवश्य प्राचीनतर हो सकती है जिनका आचार्य भद्रबाहु ने अपनी कृतियों में समावेश कर लिया हो । इसी प्रकार नियुक्तियों की कुछ गाथाएँ अर्वाचीन-बाद के आचार्यों द्वारा जोड़ी हुई भी हो सकती हैं।' १. सव्वे एए दारा, मरण विभत्तीइ वणिया कमसो । सगलउिणे पयत्थे, जिणचउद्दपुवि भासंति ॥२३३॥ २. इस विषय में मुनि श्री पुण्यविजय जी ने पर्याप्त ऊहापोह किया है। वे जिस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं वह उन्हीं के शब्दों में यहाँ उद्धृत किया - जाता है : बृहत्कल्प-भाष्य भा० ६ की प्रस्तावना में मैंने अनेक प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध किया है कि उपलब्ध नियुक्तियों के कर्ता श्रुतकेवली भद्रबाहु नहीं हैं किन्तु ज्योतिर्विद् वराहमिहिर के भ्राता द्वितीय भद्रबाहु हैं जो विक्रम की छठी शताब्दी में हुए हैं। अपने इस कथन का स्पष्टीकरण करना यहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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