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________________ नियुक्तियाँ और नियुक्तिकार जैन सम्प्रदाय की सामान्यतया यही धारणा है कि छेदसूत्रकार तथा नियुक्तिकार दोनों भद्रबाहु एक हो हैं जो चतुर्दशपूर्वधर स्थविर आर्य भद्रबाहु के नाम से प्रसिद्ध है । वस्तुतः छेदसूत्रकार चतुर्दशपूर्वधर स्थविर आर्य भद्रबाहु और नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु दो भिन्न व्यक्ति है। दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति के प्रारंभ में नियुक्तिकार कहते हैं कि प्राचीन गोत्रीय, अंतिम श्रुतकेवली, दशाश्रुतस्कन्ध, कल्प और व्यवहार प्रणेता महर्षि भद्र बाहु को मैं नमस्कार करता हूँ। इसी प्रकार का उल्लेख पंचकल्पनियुक्ति के प्रारंभ में भी है। इन उल्लेखों से यह सिद्ध होता है कि छेदसूत्रों के कर्ता चतुर्दशपूर्वधर अंतिम श्रुतकेवली स्थविर आर्य भद्रबाहुस्वामी हैं । छेदसूत्र तथा नियुक्तियाँ एक ही भद्रबाहु की कृतियाँ हैं, इस मान्यता के समर्थन के लिए भी कुछ प्रमाण मिलते हैं। इसमें सबसे प्राचीन प्रमाण आचार्य शीलांककृत आचारांग-टीका में मिलता है। इसका समय विक्रम की आठवीं शताब्दी का उत्तरार्ध अथवा नौवीं शताब्दी का प्रारंभ है । इसमें यही बताया गया है कि नियुक्तिकार चतुदशपूर्वविद् भद्रबाहुस्वामी हैं । नियुक्तिकार चतुर्दशपूर्वविद् भद्रबाहुस्वामी हैं, इस मान्यता को बाधित करने वाले प्रमाण अधिक सबल एवं तर्कपूर्ण हैं । इन प्रमाणों की प्रामाणिकता का सबसे बड़ा आधार तो यह है कि स्वयां नियुक्तिकार अपने को चतुर्दशपूर्वधर भद्रबाहुस्वामी से भिन्न बताते हैं। दूसरी बात यह है कि ये प्रमाण अधिक प्राचीन एवं प्रबल हैं । नियुक्तिकार भद्रबाहुस्वामी ही यदि चतुर्दशपूर्वविद् भद्रबाहुस्वामी हों तो उनकी बनाई हुई नियुक्तियों में निम्नलिखित बातें नहीं मिलनी चाहिए : १. आवश्यकनियुक्ति की ७६४ से ७७६ तक की गाथाओं में स्थविर भद्रगुप्त, आर्य सिंहगिरि, वज्रस्वामी, तोसलिपुत्राचार्य, आर्य रक्षित, फाल्गुरक्षित आदि अर्वाचीन आचार्यों से सम्बन्धित प्रसंगों का वर्णन ।। २. पिण्डनियुक्ति गाथा ४९८ में पादलिप्ताचार्य का प्रसंग तथा ५०३ से ५०५ तक की गाथाओं में वज्रस्वामी के मामा आर्य समितसूरि का सम्बन्ध, ब्रह्म द्वीपिक तापसों की प्रव्रज्या और ब्रह्मदीपिका शाखा की उत्पत्ति का वर्णन । १. महावीर जैन विद्यालय : रजत महोत्सव ग्रंथ, पृ० १८५ २. वंदामि भदबाहं, पाईणं चरिमसगलसुयनाणि । सुत्तस्स कारगमिसि, दसासु कप्पे य ववहारे ॥१॥ ३. नियुक्तिकारस्य भद्रबाहुस्वामिनश्चतुर्दशपूर्वधरस्याचार्योऽतस्तान् । -आचारांगटीका, पृ० ४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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