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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ३. आवश्यकनियुक्ति के प्रारंभ में दस नियुक्ति की रचना करने की प्रतिज्ञा की गई है। इससे यह स्वतः सिद्ध है कि सर्वप्रथम आबश्यकनियुक्ति लिखी गई। आवश्यकनियुक्ति की निह्नववाद से सम्बन्धित प्रायः सभी गाथाएँ ज्यों की त्यों उत्तराध्ययन नियुक्ति में ली गई हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि उत्तराध्ययननियुक्ति की रचना आवश्यकनियुक्ति के बाद ही हुई। ४. आचारांगनियुक्ति ( गा. ५) में कहा गया है कि 'आचार' और 'अंग' के निक्षेप का कथन पहले हो चुका है। इससे दशवकालिक और उत्तराध्ययन की नियुक्तियों की रचना आचारांग नियुक्ति के पूर्व सिद्ध होती है क्योंकि दशवकालिक के क्षुल्लिकाचार' अध्ययन की नियुक्ति में 'आचार' की तथा उत्तराध्ययन के 'चतुरंग' अध्ययन की नियुक्ति में 'अंग' शब्द की जो व्याख्या की गई है उसी का उपर्युक्त उल्लेख है । ५. आचारांगनियुक्ति (गा. ३४६ ) में लिखा है कि 'मोक्ष' शब्द की नियुक्ति के अनुसार ही 'विमुक्ति' शब्द की व्याख्या है। यह कथन उत्तराध्यन के 'मोक्ष' शब्द की नियुक्ति से सम्बन्ध रखता है। इससे भी यही सिद्ध होता है कि आचारांगनियुक्ति से पहले उत्तराध्ययननियुक्ति की रचना हुई। ६. सूत्रकृतांगनियुक्ति (गा. ९९ ) में कहा गया है कि 'धर्म' शब्द का निक्षेप पहले हो चुका है । यह कथन दशवकालिकनियुक्ति की रचना सूत्रकृतांगनियुक्ति के पूर्व हुई। ७. सूत्रकृतांगनियुक्ति ( गा. १२७ ) में कहा गया है कि 'ग्रन्थ' का निक्षेप पहले हो चुका है । यह कथन उत्तराध्ययननियुक्ति ( गा. २४० ) को अनुलक्षित करके है। इससे यही सिद्ध होता है कि सूत्रकृतांगनियुक्ति के पूर्व उत्तराध्ययननियुक्ति की रचना हुई। नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु : भद्रबाहु नाम के एक से अधिक आचार्य हुए हैं। श्वेताम्बर-मान्यता के अनुसार चतुर्दशपूर्वधर आचार्य भद्रबाहु नेपाल में योगसाधना के लिए गए थे, जबकि दिगम्बर-मान्यता के अनुसार यही भद्रबाहु नेपाल में न जाकर दक्षिण में गए थे। इन दो घटनाओं से यह अनुमान हो सकता है कि ये दोनों भद्रबाहु भिन्न-भिन्न व्यक्ति थे। नियुक्तियों के कर्ता भद्रबाहु इन दोनों से भिन्न एक तीसरे ही व्यक्ति हैं । ये चतुर्दशपूर्वधर भद्रबाहु न होकर विक्रम की छठी शताब्दी में विद्यमान एक अन्य ही भद्र बाहु हैं जो प्रसिद्ध ज्योतिविद् वराहमिहिर के सहोदर थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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