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________________ नियुक्तियाँ और नियुक्तिकार __ नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु वाराहीसंहिता के प्रणेता ज्योतिर्विद् बराहमिहिर के पूर्वाश्रम के सहोदर भाई के रूप में जैन सम्प्रदाय में प्रसिद्ध हैं। ये उचित है । जब मैं यह कहता हूँ कि उपलब्ध नियुक्तियाँ द्वितीय भद्रबाहु की हैं, श्रुतकेवली भद्रबाहु की नहीं तब इसका तात्पर्य यह नहीं कि श्रुतकेवली भद्रबाहु ने नियुक्तियों की रचना की ही नहीं। मेरा तात्पर्य केवल इतना ही है कि जिस अन्तिम संकलन के रूप में आज हमारे समक्ष नियुक्तियाँ उपलब्ध हैं वे श्रुतकेवली भद्रबाहु की नहीं है। इसका अर्थ यह नहीं कि द्वितीय भद्रबाहु के पूर्व कोई नियुक्तियाँ थीं ही नहीं । नियुक्ति के रूप में आगमव्याख्या की पद्धति बहुत पुरानी है। इसका पता हमें अनुयोगद्वार से लगता है। वहाँ स्पष्ट कहा गया है कि अनुगम दो प्रकार का होता है : सुत्ताणगम और निज्जुत्तिअणुगम । इतना ही नहीं किन्तु नियुक्तिरूप से प्रसिद्ध गाथाएँ भी अनुयोगद्वार में दी गई हैं। पाक्षिकसूत्र में भी सनिगुत्तिए ऐसा पाठ मिलता है। द्वितीय भद्रबाहु के पहले की गोविन्द वाचक की नियुक्ति का उल्लेख निशीथ-भाष्य व चूणि में मिलता है। इतना ही नहीं किन्तु वैदिक वाङ्माय में भी निरुक्त अति प्राचीन है । अतएव यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि जैनागम की व्याख्या का नियुक्ति नामक प्रकार प्राचीन है । यह संभव नहीं कि छठी शताब्दी तक आगमों की कोई व्याख्या नियुक्ति के रूप में हुई हो न हो । दिगम्बरमान्य मूलाचार में भी आवश्यकनियुक्तिगत कई गाथाएँ हैं । इससे भी पता चलता है कि श्वेताम्बर-दिगम्बर सम्प्रदाय का स्पष्ट भेद होने के पूर्व भी नियुक्ति की परम्परा थी । ऐसी स्थिति में श्रुतकेवली भद्रबाह ने नियुक्तियों की रचना की है-इस परम्परा को निमल मानने का कोई कारण नहीं है अतः यही मानना उचित है कि श्रुतकेवली भद्रबाहु ने भी नियुक्तियों की रचना की थी और बाद में गोविन्द वाचक जसे अन्य आचार्यों ने भी । इस प्रकार क्रमशः बढ़ते-बढ़ते नियुक्तियों का जो अन्तिम रूप हुआ वह द्वितीय भद्रबाहु का है अर्थात् द्वितीय भद्रबाहु ने अपने समय तक की उपलब्ध नियुक्ति-गाथाओं का अपनी नियुक्तियों में संग्रह किया, साथ ही अपनी ओर से भी कुछ नई गाथाएँ बनाकर जोड़ दी। यही रूप आज हमारे सामने नियुक्ति के नाम से उपलब्ध है। इस तरह क्रमशः नियुक्ति-गाथाएँ बढ़ती गई। इसका एक प्रबल प्रमाण यह है कि दशवकालिक की दोनों चूणियों में प्रथम अध्ययन की केवल ५७ नियुक्ति-गाथाएँ हैं जबकि हरिभद्र की वृत्ति में १५७ हैं । इससे यह भी सिद्ध होता है कि द्वितीय भद्रबाहु ने नियुक्तियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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