SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 435
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२६ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गच्छाचार का ज्ञान है । प्रारम्भ में आचार्य ने तीर्थकर पार्श्वनाथ को नमस्कार करके गच्छाचार की व्याख्या लिखने का संकल्प किया है : श्रीपार्वजिनमानम्य, तीर्थाधीशं वरप्रदम् । गच्छाचारे गुरोर्शातां, वक्ष्ये व्याख्यां यथाऽऽगमम् ।। अन्त में टीकाकार ने अपना, अपने धर्मगुरु, विद्यागुरु आदि का नामोल्लेख इस प्रकार किया है।' इति श्रीविजयदानसूरिविजयमानराज्ये ... श्रीआनन्द विमलसूरीश्वराणां शिष्याणुशिष्येण वानराख्येन पण्डितश्रीहर्षकुलावाप्तगच्छाचाररहस्येन गच्छाचारप्रकीर्णकटीकेयं समर्थिता। उत्तराध्ययनव्याख्या : प्रस्तुत व्याख्या' तपागच्छीय मुनिविमलसूरि के शिष्य भावविजयगणि ने वि० सं० १६८९ में लिखी है। इसका ग्रंथमान १६५५ श्लोकप्रमाण है। व्याख्या कथानकों से भरपूर है। इन कथानकों की विशेषता यह है कि ये अन्य टीकाओं के कथानकों की भांति गद्यात्मक न होकर पद्यनिबद्ध हैं। प्रारम्भ में व्याख्याकार ने पार्श्वनाथ, वर्धमान और वाग्वादिनी को प्रणाम किया है । उत्तराध्ययन सूत्र को सुगम व्याख्या लिखने का संकल्प करते हुए बताया है कि नियुक्त्यर्थ, पाठान्तर, अर्थान्तर आदि के लिये शान्तिसूरिविरचित वृत्ति देखना चाहिए । यद्यपि इस सत्र की पूर्वरचित अनेक वृत्तियां विद्यमान हैं फिर भी मैं पद्य निबद्ध कथार्थ के रूप में यह प्रयास करता हूँ : ओनमः सिद्धिसाम्राज्यसौख्यसन्तानदायिने । त्रैलोक्यपूजिताय श्रीपार्श्वनाथाय तायिने ॥१॥ श्रीवर्द्धमानजिनराजमनन्तकोति, । वाग्वादिनी च सुधियाँ जननीं प्रणम्य । श्रीउत्तराध्ययनसंज्ञकवाङ्मयस्य, __ व्याख्यां लिखामि सुगमां सकथां च काञ्चित् ॥२॥ नियुक्त्यर्थः पाठान्तराणि चार्थान्तराणि च प्रायः। श्री शान्तिसूरिविरचितवृत्तेज़ैयानि तत्त्वज्ञैः ॥३॥ १. १० ४२. २. (अ) जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, वि० सं० १९७४. (आ) विनयभक्ति सुन्दरचरण ग्रंथमाला, बेणप, सन् १९४० ( सप्तदश अध्ययन ). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy