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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कायोत्सर्गविवरण से प्राप्त पुण्य के फलस्वरूप सभी प्राणी पंचविध काय का उत्सर्ग करें । षष्ठ आवश्यक प्रत्याख्यान के विवरण में श्रावकधर्म का भी विस्तार पूर्वक विवेचन किया गया है। प्रत्याख्यान की विधि, माहात्म्य आदि आवश्यक बातों की चर्चा करते हुए वृत्तिकार ने शिष्यहिता नामक आवश्यकटीका समाप्त को है : समाप्ता चेयं शिष्यहितानामावश्यकटीका । अन्त में वे लिखते हैं : कृतिः सिताम्बराचार्यजिनभटनिगदानुसारिणो विद्याधरकुलतिलकाचार्यजिनदत्तशिष्यस्य धर्मतो जाइणीमहत्तरासूनोरल्पमतेराचार्यहरिभद्रस्य । प्रस्तुत टीका श्वेताम्बराचार्य जिनभट के आज्ञाकारी विद्यार्थी विद्याधर कुल के “तिलकभूत आचार्य जिनदत्त के शिष्य और याकिनी महत्तरा के धर्मपुत्र अल्पमति आचार्य हरिभद्र की कृति है । यह २२००० श्लोकप्रमाण है :
द्वाविंशति सहस्राणि, प्रत्येकाक्षरगणनया (संख्यया)। अनुष्टुप्छन्दसा मानमस्या उद्देशतः कृतम् ॥१॥
१. उत्तरार्ध ( उत्तरभाग ), पृ० ८६५ (२).
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