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________________ हरिभद्रकृत वृत्तियाँ ३४७ ऋषभ के पारणक के वर्णन के प्रसंग पर एक कथानक दिया गया है और विस्तृत वर्णन के लिए वसुदेवहिडि' का नामोल्लेख किया गया है । अर्हत् प्रत्यक्षरूप से सामायिक के अर्थ का अनुभव करके ही सामायिक का कथन करते हैं जिसे सुनकर गणधर आदि श्रोताओं के हृदयगत अशेष संशय का निवारण हो जाता है और उन्हें अहंत की सर्वज्ञता में पूर्ण विश्वास हो जाता है । सामायिकार्थं का प्रतिपादन करनेवाले चरम तीर्थंकर भगवान् महावीर के शासन में उत्पन्न चार अनुयोगों का विभाजन करनेवाले आर्यंरक्षित की प्रसूति से सम्बद्ध 'माया य रुट्सोमा " आदि गाथाओं का व्याख्यान करते हुए वृत्तिकार ने एतद्विषयक कथानक का बहुत विस्तार के साथ वर्णन किया है । यह कथानक प्रस्तुत संस्करण के पचीस पृष्ठों में समाप्त हुआ है । चतुविशतिस्तव और वंदना नामक द्वितीय और तृतीय आवश्यक का नियुक्ति के अनुसार व्याख्यान करने के बाद प्रतिक्रमण नामक चतुर्थं आवश्यक की व्याख्या करते हुए आचार्य ने ध्यान पर विशेष प्रकाश डाला है । 'प्रतिक्रमामि चतुभिर्ध्यानैः करणभूतैरश्रद्धेयादिना प्रकारेण योऽतिचारः कृतः, तद्यथाआर्तध्यानेन, तत्र ध्यातिर्ध्यानमिति भावसाधनः अयं ध्यानसमासार्थः । व्यासार्थस्तु ध्यानशतकादवसेयः, तच्चेदम्- .....४ ऐसा कह कर ध्यानशतक की समस्त गाथाओं का व्याख्यान किया है । इसी प्रकार परिस्थापना की विधि का वर्णन करते हुए पूरी परिस्थापनानियुक्ति उद्धृत कर दी है। सात प्रकार के भयस्थानसंबंधी अतिचारों की आलोचना का व्याख्यान करते हुए संग्रहणिकारकृत एक गाथा उद्धृत की है । आगे की वृत्ति में संग्रहणिकार की और भी अनेक गाथाएँ उद्धृत की गई हैं । इसी आवश्यक के अन्तर्गत अस्वाध्यायसम्बन्धी नियुक्ति की व्याख्या में सिद्धसेन क्षमाश्रमण की दो गाथाएँ उद्धृत की गई हैं। पंचम आवश्यक कायोत्सर्ग के अंत में शिष्यहितायां कायोत्सर्गाध्ययनं समाप्तम् ।' ऐसा पाठ है । आगे भी ऐसा ही पाठ है । इससे यह ज्ञात होता है कि प्रस्तुत वृत्ति का नाम शिष्यहिता है । इस अध्ययन के विवरण से प्राप्त पुण्य का फल क्या हो ? इसका उल्लेख करते हुए वृत्तिकार कहते हैं : कायोत्सर्गविवरणं कृत्वा यदवाप्तमिह मया पुण्यम् । तेन खलु सर्वसत्त्वा पञ्चविधं कायमुज्झन्तु ॥१॥ १. पृ० १४५ (२) २. पृ० २८० ( २ ). ३. पु० २९६ ( १ ) - ३०८ ( १ ) .. ४. उत्तरार्ध (पूर्वभाग), पृ० ५८१. ५. पृ० ६१८ (१) - ६४४ (१).. ६. पू० ६४५. ७. पृ० ७४९ (२)-७५० (१). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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