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________________ हरिभद्रकृत वृत्तियाँ ३३९ रादपनयतीत्यर्थः । यह व्युत्पत्ति तीन प्रकार की है : (१) जिससे हित सिद्ध किया जाए, (२) जो धर्म लावे अथवा (३) जो भव से छुड़ावे वह मंगल है। द्वितीय प्रकार की व्युत्पत्ति में पाणिनीय व्याकरण के सूत्रों का भी प्रयोग किया गया है। ___ दशवैकालिक सूत्र की रचना कैसे हुई ? इस प्रश्न का समाधान करते हुए टीकाकार ने नियुक्ति की गाथा का अक्षरार्थ करते हुए भावार्थ स्पष्ट करने के लिए शय्यम्भवाचार्य का पूरा कथानक उद्धृत किया है । यह और इसी प्रकार के अन्य अनेक कथानक प्रस्तुत वृत्ति में उद्धृत किये गये हैं । ये सभी कथानक प्राकृत में हैं। तप का व्याख्यान करते हुए आभ्यन्तर तप के अन्तर्गत चार प्रकार के ध्यान का स्वरूप बताते हुए आचार्य ने चार श्लोकों में ध्यान का पूरा चित्र उपस्थित कर दिया है : आर्तध्यान : राज्योपभोगशयनासनवाहनेषु, स्त्रीगन्धमाल्यमणिरत्नविभूषणेषु । इच्छाभिलाषमतिमात्रमुपैति मोहाद्, ध्यानं तदातमिति तत्प्रवदन्ति तज्ज्ञाः ॥ १ ॥ रौद्रध्यान : संछेदनैर्दहनभञ्जनमारणैश्च, __वन्धप्रहारदमनैर्विनिकृन्तनैश्च । यो याति रागमुपयाति च नानुकम्पां, ध्यानं तु रौद्रमिति तत्प्रवदन्ति तज्ज्ञाः ॥२॥ धर्मध्यान : सूत्रार्थसाधनमहाव्रतधारणेषु, बन्धप्रमोक्षगमनागमहेतुचिन्ता । पञ्चेन्द्रियव्युपरमश्च दया च भूते, ध्यानं तु धर्ममिति तत्प्रवदन्ति तज्ज्ञाः ॥ ३ ।। शुक्लध्यान : यस्येन्द्रियाणि विषयेषु पराङ्मुखानि, सङ्कल्पकल्पनविकल्पविकारदोषैः । योगैः सदा त्रिभिरहो निभृतान्तरात्मा, ध्यानोत्तमं प्रवरशुक्लमिदं वदन्ति ॥४॥ १. पृ. २ (ब), ३ (अ). २. पृ. १०-११. ३. पृ. ३१ (ब). विस्तार के लिए ध्यानशतक देखिए जिसका आचार्य हरिभद्र ने प्रस्तुत टोका में उल्लेख किया है-पृ. ३१ (ब), ३२ (अ). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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