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________________ ३०४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वस्त्र फाड़ने, सीने आदि से सम्बन्धित नियमों का उल्लेख करते हुए प्रथम उद्देश समाप्त किया गया है। अंत में "विसेस-णिसीहचुण्णिए पढमो उद्देसो सम्मत्तो' लिखकर यह सूचित किया गया है कि प्रस्तुत चूणि विशेषनिशीथचूर्णि अथवा निशीथविशेषचूर्णि है। द्वितीय उद्देश : प्रथम उद्देश में गुरुमासों ( उपवास ) का कथन किया गया। अब दूसरे उद्देश में लघुमासों ( एकाशन ) का कथन किया जाता है । अथवा प्रथम उद्देश में परकरण का निवारण किया गया। अब द्वितीय उद्देश में स्वकरण का निवारण किया जाता है : पढमउद्देसए गुरुमासा भणिता । अह इदाणि बितिए लहुमासा भण्णंति । अहवा-पढमुद्देशे परकरणं णिवारियं, इह बितिए सयंकरणं निवारिज्जति। यह कह कर आचार्य द्वितीय उद्देश का व्याख्यान प्रारम्भ करते हैं। प्रथम सूत्र 'जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुछणयं करेइ..' का व्याख्यान इस प्रकार किया गया है : जे त्ति णिदेसे, भिक्खू पूर्वोक्त, दारुमओ दंडओ जस्स तं दारुदंडयं, पादे पूछति जेण तं पादपुछणं-पट्टयदुनिसिज्जवज्जियं रओहरणमित्यर्थ : तं जो करेति, करेंतं वा सातिज्जति तस्स मासलहुँ पच्छित्तं । एस सुत्तत्थो। एर्य पुण सुत्तं अववातियं । इदाणि णिज्जुत्ति-वित्थरो। अर्थात् जो भिक्षु काष्ठदण्डयुक्त पादपोंछन स्वयं करता है अथवा करनेवाले का अनुमोदन करता है उसके लिए मासलघु प्रायश्चित्त का नियम है। यह सूत्रार्थ है । इसके बाद पादपोंछन के विविध प्रकारों का वर्णन किया गया है । इसी प्रकार काष्ठदण्डयुक्त पादपोंछन के ग्रहण, वितरण, परिभोग आदि के दोषों और प्रायश्चित्तों का सूत्रानुसार विवेचन किया गया है। ___ नवम सूत्र 'जे भिक्खू अचित्तपट्ठियं गंधं जिंघति जिघंतं वा सातिज्जति' का व्याख्यान करते हुए चूर्णिकार कहते हैं कि निर्जीव चन्दनादि काष्ठ की गन्ध सूघने वाले के लिए मासलधु प्रायश्चित्त का विधान है : णिज्जीवे चंदणादि कठे गंधं जिंघति मासलहुँ।४ 'जे भिक्खू लहुसगं फरुसं वयति, वयंतं वा...' ( सूत्र १८ ) की चू णि इस प्रकार है : लहुसं ईषदल्पं स्तोकमिति यावत् फरुसं णेहवज्जियं अण्णं साहँ वदति भाषते इत्यर्थः । जो साधु थोड़ा-सा भी कठोर-स्नेहरहित १. पृ० ६६. २. पृ० ६७. ३. पृ० ६८. ४. ५० ७३. ५. पृ० ७४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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