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________________ 'निशोथ-विशेषचूणि ३०३ करते हुए चर्णिकार कहते हैं कि वस्त्र-कंबलादि को सौत्रिक (सत का बना हुआ) कहते हैं, जबकि रस्सी आदि को रज्जुक कहते हैं । भाष्यकार ने चिलिमिली (परदा) के पांच प्रकार बताये हैं : सुत्तमयी, रज्जुमयी, वागमयी, दंडमयो और कडमयी । इनका स्वरूप बताते हुए चर्णिकार कहते हैं : सुत्तेण कता सुत्तमयी, तं वत्थं कंबली वा । रज्जुणा कता रज्जुमयो, सो पुण दोरो। वागेसु कता वागमयी, वागमयं वत्थं दोरो वा वक्कलं वा वत्थादि। दंडो वंसाती। कडमती वंसकडगादि । एसा पंचविहा चिलिमिणी गच्छस्स उवग्गहकारिवया घेप्पति ।' सूत्रनिर्मित चिलिमिली-परदा-यवनिका को सूत्रमती कहते हैं, जैसे वस्त्र, कम्बल आदि । रज्जु से बनी हुई को रज्जुमती कहते हैं, जैसे दोरिया आदि। इसी प्रकार वल्क अर्थात्, छाल, दंड अर्थात् बाँस आदि की लकड़ी और कट अर्थात् तृण आदि से चिलिमिलिका बनती है। गच्छ के उपकार के लिए इन पाँच प्रकार की चिलिमिलिकाओं का ग्रहण किया जाता है। आगे आचार्य ने चिलिमिली के प्रमाण, उपयोग आदि पर प्रकाश डाला है तथा संक्षेप में आगे के सूत्रों का भी व्याख्यान किया है। _ 'जे भिक्ख लाउय-पादं वा दारु-पादं वा मिट्टिया पादं वा ......." ( सूत्र ३९ ) की व्याख्या करते हुए चूर्णिकार ने लिखा है कि सूत्रार्थ का कथन हो चुका, अब नियुक्ति का विस्तार किया जाता है : भणिओ सुत्तत्थो । इदाणिं णिज्जत्तिवित्थरो भण्णति।२ यह लिखकर उन्होंने 'लाउयदारुयपाते, मट्टियपादे....' गाथा ( भाष्य ६८५ ) दी है जो नियुक्ति गाथा है । 'जे भिक्खू दंडयं वा लठ्ठियं वा अवलेहणियं वा...' ( सूत्र ४० ) का व्याख्यान करते हुए आचार्य ने दण्ड लाठी आदि का भेद बताया है। दंड बाहुप्रमाण होता है : दंडो बाहुप्पमाणो | लाठी आत्मप्रमाण अर्थात् स्वशरीरप्रमाण होती है : अवलेहणिया वासासु कद्दमफेडिणी क्षुरिकावत् । भाष्यकार ने दंड आदि का नाम इस प्रकार बताया है : दंड तीन हाथ का होता है, विदंड दो हाथ का होता है, लाठी आत्मप्रमाण होती है, विलट्ठी चार अंगुली कम होती है । भाष्यगाथा इस प्रकार है : तिण्णि उ हत्थे डंडो, दोण्णि उ हत्थे विदंडओ होति । लट्ठी आत-पमाणा, विलट्ठि चतुरंगुलेणूणा ।। ७०० ।। आगे लाठी आदि की उपयोगिता का विचार किया गया है तथा उनके रखने की विधि, तत्सम्बन्धी दोष, गुरुमास प्रायश्चित्त आदि का वर्णन किया गया है। १. पृ० ३९-४०. २. पृ० ४६. ३. पृ० ४८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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