SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन साहित्य का बहद् इतिहास जिस मकान में साधु रहना चाहे उसके स्वामी, उसकी विधवा पुत्री, पुत्र, भाई आदि किसी को भी आज्ञा लेना अनिवार्य है । मार्ग में जाते समय कहीं ठहरने का प्रसंग आए तो भी यथावसर किसी न किसी गृहस्थ की आज्ञा लेना चाहिए । राज्य में एक राजा के किसी कारण से न रहने पर दूसरे राजा की निश्चित रूप से स्थापना हो जाए तो उसकी पुन: आज्ञा लेकर ही उसके राज्य में रहना चाहिए । २४८ साध्वी की दीक्षा के प्रसंग का विवेचन करते हुए भाष्यकार ने एक कोशलक आचार्य और एक श्राविका का दृष्टान्त दिया है और बताया है कि कोशलक अपने देशस्वभाव से ही अनेक दोषों से युक्त होता है । इस मत की पुष्टि करते हुए अन्ध्र आदि प्रदेशों के निवासियों के स्वभाव की ओर भी संकेत किया गया है । अन्ध्र देश में उत्पन्न हुआ हो और अक्रूर हो, महाराष्ट्र में पैदा हुआ हो और अवाचाल हो, कोशल में उत्पन्न हुआ हो और अदुष्ट हो - ऐसा सौ में एक भी मिलना कठिन है ।' तथा अनुपयुक्त काल का स्वाध्याय की विधि आदि साधु-साध्वियों के स्वाध्याय के लिए उपयुक्त भाष्यकार ने अति विस्तृत वर्णन किया है। साथ ही अन्य आवश्यक बातों पर भी पूर्ण प्रकाश डाला है । परस्पर वाचना देने के क्या नियम हैं, इसका भी विस्तारपूर्वक प्रतिपादन किया गया है । २ अष्टम उद्देश : इस उद्देश के भाष्य में मुख्यरूप से निम्नलिखित बातों को चर्चा की गई है -- शयन करने अथवा अन्य प्रयोजन के लिए पाटे की आवश्यकता प्रतीत होने पर साधु एक हाथ से उठा सकने योग्य हल्का पाटा गाँव अथवा परगांव से मांग कर ला सकता है । परगाँव से लाने को अवस्था में तीन दिन की दूरी वाले गाँव से लाया जा सकता है, इससे अधिक नहीं । वृद्ध साधु के लिए आवश्यकता होने पर पाँच दिन की दूरी वाले स्थान से भी लाया जा सकता है । वापिस लौटाने की शर्त पर लायी हुई वस्तु अन्य मकान में ले जानी हो तो उसके लिए पुनः स्वामी की आज्ञा लेनी चाहिए इसी प्रकार किसी मकान में ठहरना हो तो उसके स्वामी की आज्ञा लेकर ही ठहरना चाहिए । किसी साधु को गोचरी आदि के लिए जाते समय किसी अन्य साधु का छोटा-बड़ा उपकरण मिले तो पूछ-ताछ कर जिसका हो उसे दे देना चाहिए । स्वामी का पता न लगने को अवस्था में उसका निर्दोष स्थान में विसर्जन कर देना चाहिए । विशेष कारण उपस्थित । ९. सप्तम उद्देश : गा० १२३-६. २. गा० १८१ - ४०६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy