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________________ व्यवहारभाष्य २४७ मिथ्यादृष्टि की उत्पत्ति और इनके लिए क्रमशः जमालि, गोविन्द, श्रावकभिक्षु, और गोष्ठामाहिल के दृष्टान्त; वसतिविषयक विविध यतनाएँ; घर के अन्दर व बाहर को अभिनिविंगडा, उसके विविध भेद, तद्विषयक विविध दोष, यतनाएँ एवं प्रायश्चित्त। सप्तम उद्देश : सप्तम उद्देश के भाष्य में निम्न विषयों का विवेचन किया गया है : जो साधु-साध्वी सांभोगिक हैं अर्थात् एक ही आचार्य के संरक्षण में हैं उन्हें ( साध्वियों को ) अपने आचार्य से पूछे बिना अन्य समुदाय से आने वाली अतिचार आदि दोषों से युक्त साध्वी को अपने संघ में नहीं लेना चाहिए। जिस साध्वी को आचार्य प्रायश्चित्त आदि से युद्ध कर दें उसे अपने संघ में न लेने वाली साध्वियों को आचार्य को यथोचित दण्ड देना चाहिए। __ जो साधु-साध्वी एक गुरु की आज्ञा में हैं वे (साधु) अन्य समुदाय के साधुओं के साथ गोचरी का व्यवहार कर सकते हैं । यदि अन्य संघ के साधु आचारविरुद्ध व्यवहार करते हों तो उनके साथ पीठ पीछे व्यवहार बन्द नहीं करना चाहिए अपितु उन्हें अपनी त्रुटियों का प्रत्यक्ष भान करवाना चाहिए। यदि वे पश्चात्ताप करके अपनी त्रुटि सुधार लें तो उनके साथ व्यवहार भंग नहीं करना चाहिए । यदि ऐसा करते हुए भी वे अपनी भूल न सुधारें तो उनके साथ व्यवहार बन्द कर देना चाहिए । साध्वियों के लिए दूसरे प्रकार का नियम है। उन्हें प्रत्यक्ष दोष देखने पर भी गोचरी का व्यवहार नहीं तोड़ना चाहिए किन्तु अपने आचार्य की आज्ञा लेकर अशुद्ध आचार वाली साध्वी के गुरु को उसकी सूचना देनी चाहिए । वैसा करने पर भी यदि वह अपना आचार न सुधारे तो उसे सूचना दे देनी चाहिए कि तुम्हारे साथ हमारा व्यवहार बन्द है। किसी भी साधु को अपनी वैयावृत्य के लिए स्त्री को दीक्षा देना अकल्प्य है । उसे दीक्षा देकर अन्य साध्वी को सौंप देना चाहिए। साध्वी किसी भी पुरुष को दीक्षा नहीं दे सकती। उसे तो किसी योग्य साधु के पास ही दीक्षा ग्रहण करना पड़ता है। साध्वी को एक संघ में दीक्षा लेकर दूसरे संघ की शिष्या बनना हो तो उसे दीक्षा नहीं देनी चाहिए। उसे जहाँ रहना हो वहीं जाकर दीक्षा ग्रहण करनी चाहिए । साधु के लिए ऐसा नियम नहीं है । वह कारणवशात् एक संघ में दीक्षा लेकर दूसरे संघ के गुरु को अपना गुरु बना सकता है । तीन वर्ष की पर्यायवाला साधु सुयोग्य होने पर तीस वर्ष की पर्यायवाली साध्वी का उपाध्याय हो सकता है। इसी प्रकार पाँच वर्ष की पर्यायवाला साधु साठ वर्ष की पर्यायवाली साध्वी का आचार्य हो सकता है। १. षष्ठ विभाग : गा० १-३८७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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