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________________ व्यवहारभाष्य २३९ ( राजधानी ) और नरपति का हित-चिन्तन करता है वह अमात्य है । अमात्य राजा को भी शिक्षा देता है । इस प्रसंग पर भाष्यकार ने राजा और पुरोहित अपनी-अपनी भार्या द्वारा किस प्रकार घसीटे गये, इसका बहुत रोचक उदाहरण दिया है । कुमार का स्वरूप इस प्रकार है : जो दुर्दान्त आदि लोगों का दमन करता हुआ संग्राम नीति में अपनी कुशलता का परिचय देता है वह कुमार है । इस प्रकार राजा आदि के स्वरूप का वर्णन करने के बाद आचार्य वैद्य आदि का स्वरूप बताते हैं। जो वैद्यकशास्त्रों का सम्यग्ज्ञाता है तथा मातापिता आदि से सम्बन्धित रोगों का नाश कर स्वास्थ्य प्रदान करता है वह वैद्य है। जिसके पास पिता-पितामह आदि परम्परा से प्राप्त करोड़ों की सम्पत्ति विद्यमान हो वह धनिक है । नियतिक अथवा नयतिक का स्वरूप इस प्रकार है : 'जिसके पास भोजन के लिए निम्नलिखित सत्रह प्रकार के धान्य के भाण्डार भरे हुए हों वह नयतिक-नियतिक है : १. शालि, २. यव, ३. क्रोद्रव, ४. व्रीहि, ५. रालक, ६. तिल, ७. मुद्ग, ८. माष, ९. चवल, १०. चणक, ११. तुवरी, १२. मसुरक, १३. कुलत्थ, १४. गोधूम, १५. निष्पाव, १६. अतसी, १७. सण । रूपयक्ष का स्वरूप बताते हुए भाष्यकार कहते हैं कि जो माढर और कौण्डिन्य को दण्डनीति में कुशल है, किसी से भी उत्कोच नहीं लेता तथा किसी प्रकार का पक्षपात नहीं करता वह रूपयक्ष अर्थात् मूर्तिमान् धर्मैकनिष्ठ देव है । यहाँ तक वणिक् दृष्टान्त का अधिकार है। इस दृष्टान्त को साधुओं पर घटाते हुए आचार्य कहते हैं कि जिस प्रकार राजा आदि के अभाव में उपयुक्त वणिक् का कहीं वास करना उचित नहीं उसी प्रकार साधु के लिए भी जिस गच्छ में आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर और गीतार्थ न हों उस गच्छ में रहना ठीक नहीं। इसके बाद भाष्यकार ने आचार्य आदि के स्वरूप का वर्णन किया है। द्वितीय उद्देश : द्वितीय उद्देश के प्रथम सत्र की सूत्र-स्पर्शिक व्याख्या करते हुए भाष्यकार ने 'द्वि', 'सार्मिक' और 'विहार' का निक्षेप-पद्धति से विवेचन किया है। 'द्वि' शब्द का छ: प्रकार का निक्षेप होता है : नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । 'सार्मिक' शब्द के निम्नलिखित बारह निक्षेप हैं : नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, प्रवचन, लिंग, दर्शन, ज्ञान, चारित्र, अभिग्रह और भावना । 'विहार' शब्द का नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव निक्षेप से विचार होता है। १. तृतीय विभाग : पृष्ठ १२७-१३१. २. वही, पृ० १३१-२. ३. वही, पृ० १३२-७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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