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________________ २१८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आचरण न करनेवाले आचार्य की अयोग्यता का दिग्दर्शन कराया है । इस प्रसङ्ग पर साँप के सिर और पूँछ का संवाद, खसद्रुमशृगाल का आख्यान, बंदर और चिड़िया का संवाद, वैद्यपुत्र का कथानक आदि उदाहरण भी प्रस्तुत किए हैं । 'आर्य' पद का १. नाम, २. स्थापना, ३. द्रव्य, ४. क्षेत्र, ५. जाति, ६. कुल, ७. कर्म, ८. भाषा, ९. शिल्प, १०. ज्ञान, ११. दर्शन और १२. चारित्ररूप बारह प्रकार के निक्षेपों से विचार किया है। आर्यजातियाँ छः हैं : अम्बष्ठ, कलिन्द, वैदेह, विदक, हारित और तन्तुण । आर्यकुल भी छः हैं : उग्र, भोग, राजन्य, क्षत्रिय, ज्ञात-कौरव और इक्ष्वाकु । आर्यक्षेत्र के बाहर विचरने से लगनेवाले दोषों का निरूपण करते हुए स्कन्दकाचार्य का दृष्टान्त दिया गया है । ज्ञान-दर्शन-चारित्र की रक्षा और वृद्धि को दृष्टि में रखते हुए आर्यक्षेत्र के बाहर विचरने के विधान की दृष्टि से सम्प्रतिराज का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है ।' यहाँ तक प्रथम उद्देश का अधिकार है । द्वितीय उद्देश : द्वितीय उद्देश की व्याख्या में निम्नलिखित सात प्रकार के सूत्रों का अधिकार है : १. उपाश्रयप्रकृत, २. सागारिकपारिहारिकप्रकृत, ३. आहृतिकानिहृतिकाप्रकृत, ४. अंशिकाप्रकृत, ५. पूज्यभक्तोपकरणप्रकृत, ६. उपधिप्रकृत, ७. रजोहरणप्रकृत । ___ उपाश्रयप्रकृतसूत्रों के विवेचन में उपाश्रय के व्याघातों का विस्तृत वर्णन है। जिसमें शालि, व्रीहि आदि सचेतन धान्यकण बिखरे हुए हों उस उपाश्रय में श्रमण-श्रमणियों के लिए थोड़े से समय के लिए रहना भी वजित है। बीजाकीर्ण आदि उपाश्रयों में रहने से लगने वाले दोषों और प्रायश्चित्तों का निर्देश करते हुए भाष्यकार ने तद्विषयक अपवादों और यतनाओं की ओर भी संकेत किया है। प्रसंगवशात् उत्सर्गसूत्र, आपवादिकसूत्र, उत्सर्गापवादिकसूत्र, अपवादौत्सगिकसूत्र, उत्सर्गोत्सर्गिकसूत्र, अपवादापवादिकसूत्र, देशसूत्र, निरवशेषसूत्र, उत्क्रमसूत्र और क्रमसूत्र का स्वरूप बताया है। आगे यह भी बताया है किसुराविकटकुंभ, शीतोदकविकटकुंभ, ज्योति, दीपक, पिंड, दुग्ध, दधि, नवनीत, आगमन, विकट, वंशी, वृक्ष, अभ्रावकाश आदि पदार्थों से युक्त स्थानों में रहना साधु-साध्वियों के लिए निषिद्ध है।' सागारिकपारिहारिकप्रकृतसूत्रों का व्याख्यान करते हुए आचार्य ने वसति के एक अथवा अनेक सागारिकों के आहार आदि के त्याग की विधि बताई है । १. गा० ३२४०-३२८९. २. गा० ३२९०-३५१७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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