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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास उपोद्घात के बाद नमस्कार, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, प्रायश्चित्त, ध्यान, प्रत्याख्यान आदि का निक्षेप-पद्धति से व्याख्यान किया गया है । नमस्कार - प्रकरण में अर्हत्, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु के स्वरूप का भी विचार किया गया है । प्रतिक्रमण प्रकरण में नागदत्त महागिरि, स्थूलभद्र, धर्मघोष, सुरेन्द्रदत्त, धन्वन्तरी वैद्य, करकंडु, पुष्पभूति आदि अनेक ऐतिहासिक पुरुषों के उदाहरण भी दिये गये हैं । " दशवेकालिक नियुक्ति : ሪ • दवैकालिक नियुक्ति में दश, एक, काल, ओघ, द्रुम, पुष्प, धर्मं, मंगल, अहिंसा, संयम, तप, हेतु, उदाहरण, विहंगम, श्रमण, पूर्व, काम, पद, क्षुल्लक, महत्, आचार, कथा, जीव, निकाय, शस्त्र, पिण्ड, एषणा, धान्य, रत्न, स्थावर, द्विपद चतुष्पद, वाक्य, शुद्धि, प्रणिधि, विनय, सकार, भिक्षु, चूलिका, रति आदि पदों का निक्षेपपूर्वक व्याख्यान किया गया है । हेतु और दृष्टान्त के स्वरूप का विवेचन करते हुए नियुक्तिकार ने अनुमान के निम्नोक्त अवयवों का निर्देश किया है : १. प्रतिज्ञा, २. विभक्ति, ३ हेतु, ४. विभक्ति, ५. विपक्ष, ६. प्रतिषेध, ७. दृष्टान्त, ८. आशंका, ९. तत्प्रतिषेध, १०. निगमन । धान्य तथा रत्न का व्याख्यान करते हुए प्रत्येक की चौबीस जातियाँ बताई है । धान्य की जातियाँ इस प्रकार हैं : १. यव, २. गोधूम, ३. शालि, ४. व्रीहि, ५. षष्टिक, ६. कोद्रव, ७. अणुक, ८. कंगु, ९. रालग, १०. तिल, ११. मुद्ग, १२. माष, १३. अतसी, १४. हरिमंथ, १५. त्रिपुटक, १६. निष्पाव, १७. सिलिंद, १८. राजमाष, १९. इक्षु, २०. मसूर, २१. तुवरी २२. कुलत्थ, २३. धान्यक, २४. कलाया । रत्न की चौबीस जातियाँ ये हैं : १. सुवर्ण, २. त्रपु ३. ताम्र, ४. रजत, ५. लौह, 1 ६. सीसक, ७. हिरण्य, ८. पाषाण, ९. वज्र, १०. मणि, ११. मौक्तिक, १२. प्रवाल, १३. शंख, १४. विनिश, १५. अगरु, १६. चन्दन, १७. वस्त्र, १८. अमिल, १९. काष्ठ, २०. चर्म, २१. दंत, २२. वाल, २३. गंध, २४. द्रव्यौषध । चतुष्पद प्राणियों के दस भेद आचार्य ने बताये हैं : १. गो, २. महिषी, ३. उष्ट्र, ४. अज, ५. एडक, ६. अश्व, ७ अश्वतर, ८. घोटक, ९. गर्दभ, १०. हस्ती । कम दो प्रकार का है : संप्राप्त और असंप्राप्त । नियुक्तिकार ने संप्राप्तकाम के चौदह एवं असंप्राप्तकाम के दस भेद किये हैं । संप्राप्तकाम के चौदह भेद ये हैं : १. दृष्टिसंपात, २. संभाषण, ३. हसित, ४. ललित, ५. उपगूहित, ६. दंतनिपात, ७. नखनिपात, ८. चुंबन, ९. आलिंगन, १०. आदान, ११. करण, १२. आसेवन, १३. संग, १४. क्रीड़ा । असंप्राप्तकाम दस प्रकार का है : १. अर्थ, २. चिंता, ३. श्रद्धा, ४. संस्मरण, ५. विक्लवता, ६. लज्जानाश, ७ प्रमाद, ८. उन्माद, ९. तद्भावना, १०. मरण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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