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________________ प्रास्ताविक निमित्त तथा मंत्रविद्या में पारंगत नैमित्तिक भद्रबाहु के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। उपसर्गहरस्तोत्र और भद्रबाहुसंहिता भी इन्हीं की रचनाएँ हैं । वराहमिहिर वि. सं. ५६२ में विद्यमान थे क्योंकि 'पंचसिद्धान्तिका' के अन्त में शक संवत् ४२७ अर्थात् वि. सं. ५६२ का उल्लेख है । नियुक्तिकार भद्रबाहु का भी लगभग यही समय है। अतः नियुक्तियों का रचना-काल वि. सं. ५००-६०० के बीच में मानना युक्तियुक्त है। /आवश्यकनियुक्ति : आवश्यकनियुक्ति आचार्य भद्रबाहु की सर्वप्रथम कृति है । यह विषय-वैविध्य की दृष्टि से अन्य नियुक्तियों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है । इस पर जिनभद्र, जिनदासगणि, हरिभद्र, कोट्याचार्य, मलयगिरि, मलधारी हेमचन्द्र, माणिक्यशेखर प्रभृति आचार्यों ने विविध व्याख्याएँ लिखी हैं । आवश्यकनियुक्ति की गाथा-संख्या भिन्न-भिन्न व्याख्याओं में भिन्न-भिन्न रूपों में मिलती है। किसीकिसी व्याख्या में कहीं-कहीं जिनभद्रकृत विशेषावश्यकभाष्य की गाथाएँ नियुक्तिगाथाओं में मिली हुई प्रतीत होती है । माणिक्यशेखरकृत आवश्यकनियुक्तिदीपिका में नियुक्ति की १६१५ गाथाएँ हैं । आवश्यकनियुक्ति आवश्यकसूत्र के सामायिकादि छः अध्ययनों की सर्वप्रथम ( पद्यबद्ध प्राकृत) व्याख्या है। इसके प्रारम्भ में उपोद्घात है जो प्रस्तुत नियुक्ति का बहुत ही महत्त्वपूर्ण अंग है । यह अंश एक प्रकार से समस्त नियुक्तियों की भूमिका है। इसमें ज्ञानपंचक, सामायिक, ऋषभदेव-चरित्र, महावीर-चरित्र, गणधरवाद, आर्यरक्षित-चरित्र; निह्नवमत ( सप्त निह्नव ) आदि का संक्षिप्त विवेचन किया गया है। ऋषभदेव के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं के वर्णन के साथ ही साथ उस युग से सम्बन्धित आहार, शिल्प, कर्म, ममता, विभूषणा, लेखन, गणित, रूप, लक्षण, मानदण्ड, पोत, व्यवहार, नीति, युद्ध, इषुशास्त्र, उपासना, चिकित्सा, अर्थशास्त्र, बन्ध, घात, ताडना, यश, उत्सव, समवाय, मंगल, कौतुक, वस्त्र, गंध, माल्य, अलंकार, चूला, उपनयन, विवाह, दत्ति, मृतक-पूजन, ध्यापन, स्तूप, शब्द, खेलापन और पृच्छन-इन चालीस विषयों का भी निर्देश किया गया है। चौबीस तीर्थंकरों के भिक्षालाभ के प्रसंग से निम्नलिखित नगरों के नाम दिये गये हैं : हस्तिनापुर, अयोध्या, श्रावस्ती, साकेत, विजयपुर, ब्रह्मस्थल, पाटलिखण्ड, पद्मखण्ड, श्रेयःपुर, रिष्टपुर, सिद्धार्थपुर, महापुर, धान्यपुर, वर्धमान, सोमनस, मन्दिर, चक्रपुर, राजपुर, मिथिला, राजगृह, वीरपुर, द्वारवती, कूपकट और कोल्लाकग्राम । धर्मचक्र का वर्णन करते हुए नियुक्तिकार ने बताया है कि बाहुबलि ने अपने पिता ऋषभदेव की स्मृति में धर्मचक्र की स्थापना की थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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